Saturday, September 5, 2020

Viramchinh (Punctuation mark) part-4

व्याकरण

कक्षा-10 

 विराम-चिह्न। (भाग-4) 

(Punctuation)

A hindi lesson by - Chander Uday Singh



(5) विस्मयादिबोधक चिह्न (Sign of Interjection) ( ! )- इस चिह्न का प्रयोग हर्ष, विवाद, विस्मय, घृणा, आश्रर्य, करुणा, भय इत्यादि का बोध कराने के लिए  किया जाता है।

जैसे- वाह ! आप यहाँ कैसे पधारे ?
हाय ! बेचारा व्यर्थ में मारा गया।

(i) आह्रादसूचक शब्दों, पदों और वाक्यों के अन्त में इसका प्रयोग होता है। जैसे- वाह! तुम्हारे क्या कहने!

(ii)अपने से बड़े को सादर सम्बोधित करने में इस चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे- हे राम! तुम मेरा दुःख दूर करो। हे ईश्र्वर ! सबका कल्याण हो।

(iii) जहाँ अपने से छोटों के प्रति शुभकामनाएँ और सदभावनाएँ प्रकट की जाये। 

जैसे- भगवान तुम्हारा भला करे ! 

यशस्वी होओ  !

उसका पुत्र चिरंजीवी हो !

प्रिय किशोर, स्नेहाशीर्वाद !

(iv) जहाँ मन की हँसी-खुशी व्यक्त की जाय।
जैसे- कैसा निखरा रूप है ! तुम्हारी जीत होकर रही, शाबाश ! वाह ! वाह ! कितना अच्छा गीत गाया तुमने !
(विस्मयादिबोधक चिह्न में प्रश्रकर्ता उत्तर की अपेक्षा नहीं करता।

(v) संबोधनसूचक शब्द के बाद; जैसे-
मित्रो ! अभी मैं जो कहने जा रहा हूँ।
साथियो ! आज देश के लिए कुछ करने का समय आ गया है।

(vi) अतिशयता को प्रकट करने के लिए कभी-कभी दो-तीन विस्मयादिबोधक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। 

जैसे-
अरे, वह मर गया ! शोक !! महाशोक !!!
 

(6)प्रश्नवाचक चिह्न (Question mark)( ? ) - बातचीत के दौरान जब किसी से कोई बात पूछी जाती है अथवा कोई प्रश्न पूछा जाता है, तब वाक्य के अंत में प्रश्नसूचक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
 

जैसे- तुम कहाँ जा रहे हो ?

वहाँ क्या रखा है ?

इतनी सुबह-सुबह तुम कहाँ चल दिए ? 

इसका प्रयोग निम्रलिखित अवस्थाओं में होता है-

(i) जहाँ प्रश्न करने या पूछे जाने का बोध हो।

जैसे- क्या आप गया से आ रहे है ? 

(ii) जहाँ स्थिति निश्चित न हो।

जैसे- आप शायद पटना के रहनेवाले है ?

(iii) जहाँ व्यंग्य किया जाय।

जैसे- भ्रष्टाचार इस युग का सबसे बड़ा शिष्टाचार है, है न ?

जहाँ घूसखोरी का बाजार गर्म है, वहाँ ईमानदारी कैसे टिक सकती है ?

(iv) इस चिह्न का प्रयोग संदेह प्रकट करने के लिए भी उपयोग किया जाता है; जैसे- क्या कहा, वह निष्ठावान (?) है।

(7) कोष्ठक (Bracket)( () ) - वाक्य के बीच में आए शब्दों अथवा पदों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए कोष्ठक का प्रयोग किया जाता है।

जैसे- उच्चारण (बोलना) जीभ एवं कण्ठ से होता है।

लता मंगेशकर भारत की कोकिला (मीठा गाने वाली) हैं।

सब कुछ जानते हुए भी तुम मूक (मौन/चुप) क्यों हो?

(8) योजक चिह्न (Hyphen) ( - ) - हिंदी में अल्पविराम के बाद योजक चिह्न का प्रयोग अधिक होता है। दो शब्दों में परस्पर संबंध स्पष्ट करने के लिए तथा उन्हें जोड़कर लिखने के लिए योजक-चिह्न का प्रयोग किया जाता है। इसे 'विभाजक-चिह्न' भी कहते है।


जैसे- जीवन में सुख-दुःख तो चलता ही रहता है।

रात-दिन परिश्रम करने पर ही सफलता मिलती है।


भाषाविज्ञान की दृष्टि से हिन्दी भाषा की प्रकृति विश्लेषणात्मक है, संस्कृत की तरह संश्लेषणात्मक नहीं। संस्कृत में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं होता।

एक उदाहरण इस प्रकार है- गायन्ति रमनामानि सततं ये जना भुवि।

नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्यो नमस्तेभ्योपुनः पुनः।।

हिन्दी में इसका अनुवाद इस प्रकार होगा- पृथ्वी पर जो सदा राम-नाम गाते है, मै उन्हें बार-बार प्रणाम करता हूँ।

यहाँ संस्कृत में 'रमनामानि' लिखा गया और हिन्दी में 'राम-नाम', संस्कृत में 'पुनः पुनः' लिखा गया और हिन्दी में 'बार-बार' । अतः, संस्कृत और हिन्दी का अन्तर स्पष्ट है।

योजक चिह्न की आवश्यकता

अब प्रश्न आता है कि योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता क्यों होती है-

योजक चिह्न लगाने की आवश्यकता इसलिए होती  है क्योंकि वाक्य में प्रयुक्त शब्द और उनके अर्थ को योजक चिह्न चमका देता है। यह किसी शब्द के उच्चारण अथवा वर्तनी को भी स्पष्ट करता है।


श्रीयुत रामचन्द्र वर्मा का ठीक ही कहना है कि यदि योजक चिह्न का ठीक-ठीक ध्यान न रखा जाय, तो अर्थ और उच्चारण से सम्बद्ध अनेक प्रकार के भ्रम हो सकते हैं।

इस सम्बन्ध में वर्माजी ने 'भ्रम' के कुछ उदाहरण इस प्रकार दिये हैं-

(क) 'उपमाता' का अर्थ 'उपमा देनेवाला' भी है और 'सौतेली माँ' भी। यदि लेखक को दूसरा अर्थ अभीष्ट है, तो 'उप' और 'माता' के बीच योजक चिह्न लगाना आवश्यक है, नहीं तो अर्थ स्पष्ट नहीं होगा और पाठक को व्यर्थ ही मुसीबत मोल लेनी होगी।

(ख) 'भू-तत्व' का अर्थ होगा- भूमि या पृथ्वी से सम्बद्ध तत्व ; पर यदि 'भूतत्तव' लिखा जाय, तो 'भूत' शब्द का भाववाचक संज्ञारूप ही माना और समझा जायेगा।

(ग) इसी तरह, 'कुशासन' का अर्थ 'बुरा शासन' भी होगा और 'कुश से बना हुआ आसन' भी। यदि पहला अर्थ अभीष्ट है, तो 'कु' के बाद योजक चिह्न लगाना आवश्यक है।

उक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि योजक चिह्न की अपनी उपयोगिता है और शब्दों के निर्माण में इसका बड़ा महत्त्व है। किन्तु, हिन्दी में इसके प्रयोग के नियम निर्धारित नहीं है, इसलिए हिन्दी के लेखक इस ओर पूरे स्वच्छन्द हैं।

योजक चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्था में होता है-

(i) योजक चिह्न प्रायः दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता है, किंतु दोनों का स्वतंत्र रूप बना रहता है। इस संबंध में नियम यह है कि जिन शब्दों या पदों के दोनों खंड प्रधान हों और जिनमें और अनुक़्त या लुप्त हो, वहाँ योजक चिह्न का प्रयोग होता है।

जैसे- दाल-रोटी, दही-बड़ा, सीता-राम, फल-फूल ।

(ii) दो विपरीत अर्थवाले शब्दों के बीच योजक चिह्न लगता है।

जैसे- ऊपर-नीचे, राजा-रानी, रात-दिन, पाप-पुण्य, आकाश-पाताल, स्त्री-पुरुष, माता-पिता, स्वर्ग-नरक।

(iii) एक अर्थवाले सहचर शब्दों के बीच भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।

जैसे- दीन-दुःखी, हाट-बाजार, रुपया-पैसा, मान-मर्यादा, कपड़ा-लत्ता, हिसाब-किताब, भूत-प्रेत।


(iv) जब दो विशेषणों का प्रयोग संज्ञा के अर्थ में हो, वहाँ भी योजक चिह्न का व्यवहार होता है।

जैसे- अंधा-बहरा, भूखा-प्यासा, लूला-लँगड़ा।

 (v) जब दो शब्दों में एक सार्थक और दूसरा निरर्थक हो तो वहाँ भी योजक चिह्न लगता है।

जैसे- परमात्मा-वरमात्मा, उलटा -पुलटा, अनाप-शनाप, खाना-वाना, पानी-वानी ।

(vi) जब एक ही संज्ञा दो बार लिखी जाय तो दोनों संज्ञाओं के बीच योजक चिह्न लगता है।

जैसे- नगर-नगर, गली-गली, घर-घर, चम्पा-चम्पा, वन-वन, बच्चा-बच्चा, रोम-रोम ।

(vii) निश्रित संख्यावाचक विशेषण के दो पद जब एक साथ प्रयोग में आयें तो दोनों के बीच योजक चिह्न लगेगा।

जैसे- एक-दो, दस-बारह, नहला-दहला, छह-पाँच, नौ-दो, दो-दो, चार-चार।

 (viii) जब दो शुद्ध संयुक्त क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त हों,तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगता है।

जैसे- पढ़ना-लिखना, उठना-बैठना, मिलना-जुलना, मारना-पीटना, खाना-पीना, आना-जाना, करना-धरना, दौड़ना-धूपना, मरना-जीना, कहना-सुनना, समझना-बुझना, उठना-गिरना, रहना-सहना, सोना-जगना।

(ix) क्रिया की मूलधातु के साथ आयी प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग होता है।

जैसे- उड़ना-उड़ाना, चलना-चलाना, गिरना-गिराना, फैलना-फैलाना, पीना-पिलाना, ओढ़ना-उढ़ाना, सोना-सुलाना, सीखना-सिखाना, लेटना-लिटाना।

(x) दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के बीच भी योजक चिह्न लगाया जाता है।

जैसे- डराना-डरवाना, भिंगाना-भिंगवाना, जिताना-जितवाना, चलाना-चलवाना, कटाना-कटवाना, कराना-करवाना।

(xi) परिमाणवाचक और रीतिवाचक क्रियाविशेषण में प्रयुक्त दो अव्ययों तथा 'ही', 'से', 'का', 'न', आदि के बीच योजक चिह्न का व्यवहार होता है।

जैसे- बहुत-बहुत, थोड़ा-थोड़ा, थोड़ा-बहुत, कम-कम, कम-बेश, धीरे-धीरे, जैसे-तैसे, आप-ही आप, बाहर-भीतर, आगे-पीछे, यहाँ-वहाँ, अभी-अभी, जहाँ-तहाँ, आप-से-आप, ज्यों-का-त्यों, कुछ-न-कुछ, ऐंसा-वैसा, जब-तब, तब-तब, किसी-न-किसी, साथ-साथ।

(xii ) गुणवाचक विशेषण में भी 'सा' जोड़कर योजक चिह्न लगाया जाता है।

जैसे- बड़ा-सा पेड़, बड़े-से-बड़े लोग, ठिंगना-सा आदमी।

(xiii ) जब किसी पद का विशेषण नहीं बनता, तब उस पद के साथ 'सम्बन्धी' पद जोड़कर दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।

जैसे- भाषा-सम्बन्धी चर्चा, पृथ्वी-सम्बन्धी तत्व, विद्यालय-सम्बन्धी बातें, सीता-सम्बन्धी वार्त्ता।

यहाँ ध्यान देने की बात है कि जिन शब्दों के विशेषणपद बन चुके हैं या बन सकते है, वैसे शब्दों के साथ 'सम्बन्धी' जोड़ना उचित नहीं। यहाँ 'भाषा-सम्बन्धी' के स्थान पर 'भाषागत' या 'भाषिक' या 'भाषाई' विशेषण लिखा जाना चाहिए।

इसी तरह, 'पृथ्वी-सम्बन्धी' के लिए 'पार्थिव' विशेषण लिखा जाना चाहिए। हाँ, 'विद्यालय' और 'सीता' के साथ 'सम्बन्धी' का प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि इन दो शब्दों के विशेषणरूप प्रचलित नहीं हैं। आशय यह कि सभी प्रकार के शब्दों के साथ 'सम्बन्धी' जोड़ना ठीक नहीं।

(xiv ) जब दो शब्दों के बीच सम्बन्धकारक के चिह्न- का, के और की- लुप्त या अनुक्त हों, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसे शब्दों को हम सन्धि या समास के नियमों से अनुशासित नहीं कर सकते। इनके दोनों पद स्वतंत्र होते हैं।

जैसे-शब्द-सागर, लेखन-कला, शब्द-भेद, सन्त-मत, मानव-जीवन, मानव-शरीर, लीला-भूमि, कृष्ण-लीला, विचार-श्रृंखला, रावण-वध, राम-नाम, प्रकाश-स्तम्भ।

(xv ) लिखते समय यदि कोई शब्द पंक्ति के अन्त में पूरा न लिखा जा सके, तो उसके पहले आधे खण्ड को पंक्ति के अन्त में रखकर उसके बाद योजक चिह्न लगाया जाता है। ऐसी हालत में शब्द को 'शब्दखण्ड' या 'सिलेबुल' या पूरे 'पद' पर तोड़ना चाहिए। जिन शब्दों के योग में योजक चिह्न आवश्यक है, उन शब्दों को पंक्ति में तोड़ना हो तो शब्द के प्रथम अंश के बाद योजक चिह्न देकर दूसरी पंक्ति दूसरे अंश के पहले योजक देकर जारी करनी चाहिए।

(xvi)अनिश्रित संख्यावाचकविशेषण में जब 'सा', 'से' आदि जोड़े जायें, तब दोनों के बीच योजक चिह्न लगाया जाता है।
जैसे- बहुत-सी बातें, कम-से-कम, बहुत-से लोग, बहुत-सा रुपया, अधिक-से-अधिक, थोड़ा-सा काम।


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Tuesday, September 1, 2020

Viramchinh (Punctuation mark) part-3

व्याकरण

 कक्षा-10 

 विराम-चिह्न। (भाग-3) 

(Punctuation)

A hindi lesson by - Chander Uday Singh


(2)अर्द्ध विराम (Semi colon) ( ; ) - जहाँ अल्प विराम से कुछ अधिक ठहरते है तथा पूर्ण विराम से कम ठहरते है, वहाँ अर्द्ध विराम का चिह्न ( ; ) लगाया जाता है।

यदि एक वाक्य या वाक्यांश के साथ दूसरे वाक्य या वाक्यांश का संबंध बताना हो तो वहाँ अर्द्धविराम का प्रयोग होता है। इस प्रकार के वाक्यों में वाक्यांश दूसरे से अलग होते हुए भी दोनों का कुछ-न कुछ संबंध रहता है।


कुछ उदाहरण इस प्रकार है-


(a)आम तौर पर अर्द्धविराम दो उपवाक्यों को जोड़ता है जो थोड़े से असंबद्ध होते है एवं जिन्हें 'और' से नहीं जोड़ा जा सकता है। जैसे-

फलों में आम को सर्वश्रेष्ठ फल मन गया है; किन्तु श्रीनगर में और ही किस्म के फल विशेष रूप से पैदा होते है।


(b) दो या दो से अधिक उपाधियों के बीच अर्द्धविराम का प्रयोग होता है; जैसे- 


एम. ए.; बी, एड. । एम. ए.; पी. एच. डी. । एम. एस-सी.; डी. एस-सी. ।


वह एक धूर्त आदमी है; ऐसा उसके मित्र भी मानते हैं।


यह घड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी; यह बहुत सस्ती है।


हमारी चिट्ठी उड़ा ले गये; बोले तक नहीं।


काम बंद है; कारोबार ठप है; बेकारी फैली है; चारों ओर हाहाकार है।


कल रविवार है; छुट्टी का दिन है; आराम मिलेगा।


(3) पूर्ण विराम (Full-Stop)( । ) - जहाँ एक बात पूरी हो जाये या वाक्य समाप्त हो जाये वहाँ पूर्ण विराम ( । ) चिह्न लगाया जाता है।

जैसे- मैं पढ़ रहा हूँ।

हिन्दी में पूर्ण विराम चिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। यह चिह्न हिन्दी का प्राचीनतम विराम चिह्न है।


(i)पूर्णविराम का अर्थ है, पूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्यतः जहाँ वाक्य की गतिअन्तिम रूप ले ले, विचार के तार एकदम टूट जायें, वहाँ पूर्णविराम का प्रयोग होता है।

जैसे-


यह हाथी है। 


वह लड़का है।


मैं आदमी हूँ। 


तुम जा रहे हो।


इन वाक्यों में सभी एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। सबके विचार अपने में पूर्ण है। ऐसी स्थिति में प्रत्येक वाक्य के अंत में पूर्णविराम लगना चाहिए। संक्षेप में, प्रत्येक वाक्य की समाप्ति पर पूर्णविराम का प्रयोग होता है।


(ii) कभी कभी किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अन्त में पूर्णविराम का प्रयोग होता है।

जैसे- गोरा रंग।

(a) गालों पर कश्मीरी सेब की झलक। नाक की सीध में ऊपर के ओंठ  पर मक्खी की तरह कुछ काले बाल। सिर के बाल न अधिक बड़े, न अधिक छोटे।

(b) कानों के पास बालों में कुछ सफेदी। पानीदार बड़ी-बड़ी आँखें। चौड़ा माथा। बाहर बन्द गले का लम्बा कोट।

यहाँ व्यक्ति की मुखमुद्रा का बड़ा ही सजीव चित्र कुछ चुने हुए शब्दों तथा वाक्यांशों में खींचा गया है। प्रत्येक वाक्यांश अपने में पूर्ण और स्वतंत्र है। ऐसी स्थिति में पूर्णविराम का प्रयोग उचित ही है।


(iii) इस चिह्न का प्रयोग प्रश्नवाचक और विस्मयादिबोधक वाक्यों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के वाक्यों के अंत में किया जाता है।


जैसे- राम स्कूल से आ रहा है।


वह उसकी सौंदर्यता पर मुग्ध हो गया। 


वह छत से गिर गया।


(iv) दोहा, श्लोक, चौपाई आदि की पहली पंक्ति के अंत में एक पूर्ण विराम (।) तथा दूसरी पंक्ति के अंत में दो पूर्ण विराम (।।) लगाने की प्रथा है।


जैसे- रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरे मोती, मानुस, चून।।


पूर्णविराम का दुष्प्रयोग- पूर्णविराम के प्रयोग में सावधानी न रखने के कारण निम्रलिखित उदाहरण में अल्पविराम लगाया गया है-

आप मुझे नहीं जानते, महीने में दो ही दिन व्यस्त रहा हूँ।

यहाँ 'जानते' के बाद अल्पविराम के स्थान पर पूर्णविराम का चिह्न लगाना चाहिए, क्योंकि यहाँ वाक्य पूरा हो गया है। दूसरा वाक्य पहले से बिलकुल स्वतंत्र है।


(4) उप विराम (Colon) ( : )- जहाँ वाक्य पूरा नहीं होता, बल्कि किसी वस्तु अथवा विषय के बारे में बताया जाता है, वहाँ अपूर्णविराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


जैसे- कृष्ण के अनेक नाम है : मोहन, गोपाल, गिरिधर आदि।



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