सपनों के – से दिन
-गुरदयाल सिंह
A hindi lesson by- Chander Uday Singh
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गुरदयाल सिंह (10 जनवरी 1933 - 16 अगस्त 2016)
गुरदयाल सिंह का जन्म 10 जनवरी, 1933 को पंजाब के जैतो में हुआ। 12-13 वर्ष की आयु में, जब वह कुछ सोचने-समझने लायक़ हो रहे थे, पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा, ताकि बढ़ई के धंधे में वह अपने पिता की मदद कर सकें।
एक पंजाबी साहित्यकार थे जो उपन्यास और कहानी लेखक थे। इन्हें 1999 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ... उनके उपन्यास मढ़ी दा दीवा , अंधे घोड़े का दान का सभी पंजाबी भाषाओँ में अनुवाद हो चुक्का है और इन की कहाँनीयों पर अधारत फ़िल्में भी बनी हैं।अमृता प्रीतम के बाद गुरदयाल सिंह दूसरे पंजाबी साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। गुरदयाल सिंह आम आदमी की बात कहने वाले पंजाबी भाषा के विख्यात कथाकार हैं। कई प्रसिद्ध लेखकों की तरह उपन्यासकार के रूप में गुरदयाल सिंह की उपलब्धि को भी उनके आरंभिक जीवन के अनुभवों के संदर्भ में देखा जा सकता है।
निम्नलिखित प्रश्नों
के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. कोई
भी भाषा आपसी व्यवहार
में बाधा नहीं बनती
– पाठ के किस अंश
से यह सिद्ध होता
है?
उत्तर:- कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती – पाठ के इस अंश से यह सिद्ध होता हैं – इस पाठ में लेखक ने बचपन की घटना को बताया है कि उनके आधे से ज्यादा साथी कोई हरियाणा से, कोई राजस्थान से है। सब अलग-अलग भाषा बोलते हैं, उनके कुछ शब्द सुनकर तो हँसी ही आ जाती थी परन्तु खेलते समय सब की भाषा सब समझ लेते थे। उनके व्यवहार में इससे कोई अंतर न आता था। क्योंकि बच्चे जब मिलकर खेलते हैं तो उनका व्यवहार, उनकी भाषा अलग होते हुए भी एक ही लगती है। भाषा अलग होने से आपसी खेल कूद, मेल मिलाप में बाधा नहीं बनती।
उत्तर:- पीटी साहब बहुत ही अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। छोटी सी भी गलती उनके लिए असहनीय थी। प्रार्थना सभा की कतार भी यदि सीधी न हो तो वे बच्चों को कठोर सजा देते थे। इसलिए जब कभी वे बच्चों को शाबाशी देते थे तो बच्चों को यह किसी फौजी तमगों से कम नहीं लगती थी।
प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फ़ौज के तमगों-सी क्यों लगती थी। स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3. नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता था?
उत्तर:- नयी श्रेणी में जाने और नयी कापियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन उदास हो उठता था क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें हेडमास्टर साहब द्वारा प्रबंध की गयी पुरानी किताबें ही मिलती थी। वे भी अन्य बच्चों की तरह नयी श्रेणी में नयी कापियाँ और किताबें चाहते थे जो उन्हें नहीं मिल पाती थी इसलिए वे उदास हो जाते थे।
प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्वपूर्ण आदमी फ़ौजी जवान क्यों समझने लगता था?
उत्तर:- स्काउट परेड में लेखक साफ़ सुथरे धोबी के घुले कपड़े, पॉलिश किए हुए बूट, जुराबों को पहन कर जब लेखक ठक-ठक करके चलता था तो वह अपने आपको फ़ौजी से कम नहीं समझता था। उसके साथ ही जब पीटी मास्टर परेड करवाया करते और उनके आदेश पर लेफ्ट टर्न, राइट टर्न या अबाऊट टर्न को सुनकर जब वह अकड़कर चलता तो अपने अंदर एक फ़ौजी जैसी आन-बान-शान महसूस करता था।
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