Saturday, April 25, 2020

Madhur Madhur Mere Deepak Jal, part-3,


मधुर मधुर मेरे दीपक जल (कविता)

-महादेवी वर्मा
A hindi lesson by- Chander Uday Singh
प्रश्न—अभ्यास
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए 
Question 1:− प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
Answer:- प्रस्तुत कविता में ‘दीपक‘ ईश्वर के प्रति आस्था एवं आत्मा का और प्रियतम उसके आराध्य ईश्वर का प्रतीक है। कवयित्री दीपक से जीवन की प्रत्येक विषम परिस्थिति से जूँझ कर प्रसन्नतापूर्वक ज्योति फैलाने का आग्रह करती है। वह प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती है।
Question 2:-दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
Answer:- महादेवी वर्मा ने दीपक से यह प्रार्थना की है कि वह निरंतर जलता रहे। अर्थात इसकी आस्था बनी रहे। वह आग्रह इसलिए करती हैं क्योंकि वे अपने जीवन में ईश्वर का स्थान सबसे बड़ा मानती हैं। ईश्वर को पाना ही उनका लक्ष्य है।
Question 3:- ‘विश्व—शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
Answer:- ‘विश्व–शलभ‘ अर्थात पतंगा दीपक के साथ जल जाना चाहता है। जिस प्रकार पतंगा दीये के प्रति प्रेम के कारण उसकी लौ के आस–पास घूमकर अपना जीवन समाप्त कर देता है, इसी प्रकार संसार के लोग भी अपने अहंकार को समाप्त करके आस्था रुपी दीये की लौ के समक्ष अपना समर्पण करना चाहते हैं ताकि प्रभु को पा सके।
Question 4:- आपकी दृष्टि में ट्टमधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है -
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
Answer:- इस कविता की सुंदरता दोनों पर निर्भर है। पुनरुक्ति रुप में शब्द का प्रयोग है − मधुर–मधुर, युग–युग, सिहर–सिहर, विहँस–विहँस आदि कविता को लयबद्ध बनाते हुए प्रभावी बनाने में सक्षम हैं। दूसरी ओर बिंब योजना भी सफल है। ‘विश्व–शलभ सिर धुन कहता‘, ‘मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन‘ जैसे बिंब हैं।
Question 5:- कवयित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
Answer:- कवयित्री अपने मन के आस्था रुपी दीपक से अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती हैं। उनका प्रियतम ईश्वर है।
Question 6:- कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
Answer:- कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन नज़र आते हैं। अर्थात मनुष्य में एक दूसरे से प्रेम और सौहार्द की भावना समाप्त हो गई है। उनमें आपस में कोई स्नेह नहीं है। इसलिए उसे आकाश के तारे स्नेहहीन लगते हैं।
Question 7:- पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
Answer:- जिस प्रकार पतंगा दीये की लौ में अपना सब कुछ समाप्त करना चाहता है पर कर नहीं पाता, उसी तरह मनुष्य अपना सर्वस्व समर्पित करके ईश्वर को पाना चाहता है परन्तु अपने अहंकार को नहीं छोड़ पाता। इसलिए पछतावा करता है।
Question 8:- कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग—अलग तरह से ‘मधुर मधुर, पुलक—पुलक, सिहर—सिहर और विहँस—विहँस’ जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
Answer:- कवयित्री अपने आत्मदीपक को तरह–तरह से जलने के लिए कहती हैं मीठी, प्रेममयी, खुशी के साथ, काँपते हुए, उत्साह और प्रसन्नता से। कवयित्री चाहती है कि हर परिस्थितियों में यह दीपक जलता रहे और प्रभु का पथ आलोकित करता रहे। इसलिए कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग–अलग तरह से जलने को कहा है।

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Friday, April 24, 2020

Madhur Madhur Mere Deepak Jal, part-2, मधुर मधुर मेरे दीपक जल-महादेवी वर्मा

Madhur Madhur Mere Deepak Jal, part-2


मधुर मधुर मेरे दीपक जल (कविता)


-महादेवी वर्मा



A hindi lesson by- Chander Uday Singh



कविता व्याख्या



मधुर मधुर मेरे दीपक जल
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर।

प्रतिक्षण     -   हर घडी
प्रतिपल      -  हर पल
प्रियतम      -  आराध्य , ईश्वर
आलोकित  -  प्रकाशित

प्रसंग -: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ' नवभारती ' से ली गई है। इन पंक्तियों की कवयित्री महादेवी वर्मा है। इन पंक्तियों में कवयित्री मन के दीपक को जला कर दूसरों को रह दिखने की प्रेरणा दे रही है।

व्याख्या -: कवयित्री कहती हैं कि मेरे मन के दीपक (ईश्वर के प्रति आस्था) तू मधुरता और कोमलता से जलता जा और हर पल ,हर घडी ,हर दिन और युगो -युगो तक मेरे आराध्य अथवा ईश्वर का या ज्ञान का रास्ता प्रकाशित करता जा अर्थात ईश्वर में आस्था बनी रहे।


सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल
पुलक पुलक मेरे दीपक जल।

सौरभ           -   सुगंध
विपुल           -   विस्तृत
मृदुल            -   कोमल
अपरिमित    -   असीमित ,अपार
पुलक           -   रोमांच

प्रसंग -: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'नवभारती' से ली गई है। इन पंक्तियों की कवयित्री महादेवी वर्मा है। इन पंक्तियों में कवयित्री अपने मन के दीपक को अनन्त रौशनी (ज्ञान) फैलाने को प्रेरित कर रही हैं।

व्याख्या -: कवयित्री कहती हैं कि मेरे मन के दीपक, तू अपनी सुगंध को अर्थात अपनी अच्छाई को इस तरह फैला जैसे एक धुप या अगरबत्ती अपनी खुशबु को फैलाते  हैं। अपने स्वच्छ शरीर के सहारे अपनी  कोमल मोम को इस तरह से पिघला दे कि तेरे प्रकाश की कोई सीमा ही रहे और इस तरह जल की तेरे शरीर का एक - एक अणु उसमें समा कर प्रकाश को फैलाए अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि अज्ञान का अँधेरा बहुत गहरा होता है ।अतः इसे दूर करने के लिए तन मन दोनों निछावर करने होते हैं। कवयित्री कहती हैं कि मेरे मन के दीप तू सब को रोमांचित करता हुआ जलता जा।

सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण
विश्व शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय जल पाया तुझमें मिल।
सिहर सिहर मेरे दीपक जल।

ज्वाला कण  -  आग की लपट
नूतन            -  नया
शलभ          -  पतंगा
सिर धुन       -  पछताना
सिहर           -  कांपना

प्रसंग -: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'नवभारती ' से ली गई है। इन पंक्तियों की कवयित्री महादेवी वर्मा है। इन पंक्तियों में कवयित्री दीपक को इस तरह से जलने को कहती है कि सबको बराबर प्रकाश मिले और किसी को उस प्रकाश से हानि ना हो।

व्याख्या -: कवयित्री कहती हैं कि कि मेरे मन के दीपक तू इस तरह से जल कि सभी ठण्डे , मुलायम और नए तुझसे तेरी आग के कुछ कण मांगे अर्थात सभी जिसे भी ज्ञान की जरुरत हो वो तेरे  पास आये। तू उन्हें ऐसा प्रकाश दे या ऐसा ज्ञान दे कि वो कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहे। पतंगे पछताते हुए कहें कि वो तेरी आग में समा कर क्यों नहीं जले अर्थात सांसारिक लोग भी तेरी तरह बनना चाहें अर्थात ज्ञान इतना होना चाहिए की सबके काम सके और कोई उसमे जल कर भस्म ना हो जाये। इसलिए कवयित्री कहती है कि दीपक तू कंपते हुए इस तरह जल की तेरा प्रभाव सब पर पड़े अर्थात सब अपनी जरुरत और क्षमता के हिसाब से प्रकाश या ज्ञान ले सकें।

जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल।
विहँस विहँस मेरे दीपक जल।


स्नेहहीन     -  प्रेम से रहित
उर            -  ह्रदय
विद्युत      -  बिजली
विहँस        -  भलाई
असंख्यक  - अनेक

प्रसंग -: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक 'नवभारती ' से ली गई है। इन पंक्तियों की कवयित्री महादेवी वर्मा है। इन पंक्तियों में कवयित्री अपने मन के दीपक को सबकी भलाई करते हुए आगे बढ़ने को कह रही हैं।

व्याख्या -: कवयित्री कहती हैं कि आकाश में जलते हुए अनेक तारे तो हैं परन्तु उनमें दीपक की तरह प्रेम नहीं है क्योंकि उनके पास प्रकाश तो है परन्तु वे दुनिया को प्रकाशित नहीं कर सकते। वहीँ दूसरी ओर जल से भरा सागर अपने हृदय को जलाता रहता है क्योंकि उसके पास इतना पानी होने के बावजूद भी वह पानी किसी के काम का नहीं है और बादल बिजली की सहायता से पूरी दुनिया पर बारिश करता है।  उसी तरह कवयित्री कहती है कि मेरे मन के दीपक तू भी अपनी नहीं दूसरों की भलाई करता जा।


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