Thursday, April 23, 2020

Madhur Madhur Mere Deepak Jal, part-1, मधुर मधुर मेरे दीपक जल-महादेवी वर्मा

मधुर मधुर मेरे दीपक जल (कविता ) 

-महादेवी वर्मा

A hindi lesson byChander Uday Singh

महादेवी वर्मा(1907 -1987)


कवि परिचय
'महादेवी वर्मा' का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद जिले में सन 1907 ई० में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इन्दौर में हुई। नौ वर्ष की अल्पायु में ही इनका विवाह बरेली के डॉ० स्वरूप नारायण वर्मा के साथ हो गया था।

महादेवी वर्मा ने प्रयाग विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय लेकर एम०ए० पास किया। साहित्य के प्रति इनमें बचपन से ही रूचि थी। इन्होने प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य किया। भारत सरकार ने इन्हें 'पद्मभूषण' की उपाधि से अलंकृत किया। इन्होने मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया। सन 1987 ई० में इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में इनका निधन हो गया।

महादेवी वर्मा ने बाल्यावस्था से ही मीरा, सूर और तुलसी जैसे भक्त कवियों की रचनाओं का अध्ययन किया था। यही कारण है कि ये कवि ही इनके प्रेरणा स्रोत बने। महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाये निम्नलिखित हैं-- 'नीहार', 'नीरजा', 'सांध्यगीत', 'दीपशिखा', 'यामा', 'अतीत के चलचित्र', 'स्मृति की रेखाएं', 'श्रृंखला की कड़ियां' आदि।

प्रेम की वेदना और आनन्द को अपने जीवन में अंगीकार करने वाली भक्ति काल की कवयित्री मीरा के समान आधुनिक युग की सुप्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा से कौन साहित्य प्रेमी प्रभावित नहीं होगा। हिन्दी साहित्य में इनका सर्वोच्च स्थान है।  



पाठ प्रवेश अथवा पाठ परिचय


प्रस्तुत पाठ में कवयित्री आपने आप से जो उम्मीदें कर रही है , अगर वो उम्मीदें पूरी हो जाती हैं तो न केवल उसका , हम सभी का बहुत भला हो सकता है। क्योंकि हम शरीर से भले ही अनेक हों किन्तु प्रकृति ने हम  सब को एक मनुष्य जाति के रूप में बनाया है।दूसरों से बातें करना,दूसरों को समझाना ,दूसरों को सही रास्ता दिखाना ऐसे काम तो सब करते हैं। कोई आसानी से कर लेता है ,कोई थोड़ी कठिनाई उठा कर ,कोई थोड़ी झिझक और संकोच के बाद और कोई किसी तीसरे का सहारा ले कर करता है। लेकिन इससे कहीं ज्यादा परिश्रम का काम होता है आपने आप को समझाना। अपने आप से बात करना ,अपने आप को सही रास्ते पर बनाये रखने की कोशिश करना।  अपने आपको हर परिस्थिति में ढालने के लिए तैयार रखना ,हर स्थिति में सावधान रहना और अपने आपको को चैतन्य बनाये रखना।


पाठ का सार

इस कविता के माध्यम से कवयित्री कहती हैं कि मेरे मन के दीपक (ईश्वर के प्रति आस्था) तू मधुरता और कोमलता से ज्ञान का रास्ता प्रकाशित करता जा। अपनी सुगंध को अर्थात अपनी अच्छाई को इस तरह फैला जैसे एक धुप या अगरबत्ती अपनी खुशबु को फैलाते  हैं। तेरे प्रकाश की कोई सीमा ही न रहे और इस तरह जल की तेरे शरीर का एक - एक अणु उसमें समा कर प्रकाश को फैलाए अर्थात कहने का तात्पर्य यह है कि अज्ञान का अँधेरा बहुत गहरा होता है अतः इसे दूर करने के लिए तन मन दोनों निछावर करने होते हैं।
कवयित्री कहती हैं कि मेरे मन के दीप तू सब को रोमांचित करता हुआ जलता जा। इस तरह से जल कि सभी तुझसे तेरी आग के कुछ कण मांगे अर्थात सभी जिसे भी ज्ञान की जरुरत हो वो तेरे  पास आये। तू उन्हें ऐसा प्रकाश दे या ऐसा ज्ञान दे कि वो कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार रहे। ज्ञान इतना होना चाहिए की सबके काम आ सके और कोई उसमे जल कर भस्म ना हो जाये। इसलिए कवयित्री कहती है कि  दीपक तू कंपते हुए इस तरह जल की तेरा प्रभाव सब पर पड़े। कवयित्री कहती हैं कि आकाश में जलते हुए अनेक तारे तो हैं परन्तु उनमें दीपक की तरह प्रेम नहीं है क्योंकि उनके पास प्रकाश तो है परन्तु वे दुनिया को प्रकाशित नहीं कर सकते। वहीँ दूसरी ओर जल से भरा सागर अपने हृदय को जलाता रहता है क्योंकि उसके पास इतना पानी होने के बावजूद भी वह पानी किसी के काम का नहीं है और बादल बिजली की सहायता से पूरी दुनिया पर बारिश करता है उसी तरह कवयित्री कहती है कि मेरे मन के दीपक तू भी अपनी नहीं दूसरों की भलाई करता जा।

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