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Tuesday, May 18, 2021

Kriya ki Paribhasha aur Bhed

 Kriya ki Paribhasha, Prakar, Bhed aur Udaharan (Examples)  

– Hindi Grammar

Kriya aur Uske Bhedhon ki paribhasha



क्रिया किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? क्रिया के भेदों की परिभाषा लिखो। 



वाक्य में किसी काम के करने या होने का भाव क्रिया ही बताती है। अतएव, ‘जिससे काम का होना या करना समझा जाय, उसे ही ‘क्रिया’ कहते हैं।’ जैसे-


लड़का मन से पढ़ता है और परीक्षा पास करता है।


उक्त वाक्य में ‘पढ़ता है’ और ‘पास करता है’ क्रियापद हैं।


1. क्रिया का सामान्य रूप ‘ना’ अन्तवाला होता है। यानी क्रिया के सामान्य रूप में ‘ना’ लगा रहता है।


जैसे-

खाना : खा

पढ़ना : पढ़

सुनना : सुन

लिखना : लिख आदि।


नोट : यदि किसी काम या व्यापार का बोध न हो तो ‘ना’ अन्तवाले शब्द क्रिया नहीं कहला सकते।

जैसे-

सोना महँगा है। (एक धातु है)

वह व्यक्ति एक आँख से काना है। (विशेषण)

उसका दाना बड़ा ही पुष्ट है। (संज्ञा)


2. क्रिया का साधारण रूप क्रियार्थक संज्ञा का काम भी करता है।

जैसे-

सुबह का टहलना बड़ा ही अच्छा होता है।

इस वाक्य में ‘टहलना’ क्रिया नहीं है।

निम्नलिखित क्रियाओं के सामान्य रूपों का प्रयोग क्रियार्थक संज्ञा के रूप में करें :


नहाना

कहना

गलना

रगड़ना

सोचना

हँसना

देखना

बचना

धकेलना

रोना

निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त क्रियार्थक संज्ञाओं को रेखांकित करें :

1. माता से बच्चों का रोना देखा नहीं जाता।

2. अपने माता-पिता का कहना मानो।

3. कौन देखता है मेरा तिल-तिल करके जीना।

4. हँसना जीवन के लिए बहुत जरूरी है।

5. यहाँ का रहना मुझे पसंद नहीं।।

6. घर जमाई बनकर रहना अपमान का घूट पीना है।

7. मजदूरों का जीना भी कोई जीना है?

8. सर्वशिक्षा अभियान का चलना बकवास नहीं तो और क्या है?

9. बड़ों से उनका अनुभव जानना जीने का आधार बनता है।

10. गाँधी को भला-बुरा कहना देश का अपमान करना है।


मुख्यतः क्रिया के दो प्रकार होते हैं

1. सकर्मक क्रिया

“जिस क्रिया का फल कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़े, उसे ‘सकर्मक क्रिया’  कहते हैं।”


अतएव, यह आवश्यक है कि वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म लाये। यदि क्रिया अपने साथ कर्म नहीं लाती है तो वह अकर्मक ही कहलाएगी। नीचे लिखे वाक्यों को देखें :

(i) प्रवर अनू पढ़ता है। (कर्म-विहीन क्रिया)

(ii) प्रवर अनू पुस्तक पढ़ता है। (कर्मयुक्त क्रिया)


प्रथम और द्वितीय दोनों वाक्यों में ‘पढ़ना’ क्रिया का प्रयोग हुआ है; परन्तु प्रथम वाक्य की क्रिया अपने साथ कर्म न लाने के कारण अकर्मक हुई, जबकि द्वितीय वाक्य की वही क्रिया अपने साथ कर्म लाने के कारण सकर्मक हुई।


2. अकर्मक क्रिया

“वह क्रिया, जो अपने साथ कर्म नहीं लाये अर्थात् जिस क्रिया का फल या व्यापार कर्ता पर ही पड़े, वह अकर्मक क्रिया कहलाती है।”

जैसे-

उल्लू दिनभर सोता है। 

इस वाक्य में ‘सोना’ क्रिया का व्यापार उल्लू (जो कर्ता है) ही करता है और वही सोता भी है। इसलिए ‘सोना’ क्रिया अकर्मक हुई।

कुछ क्रियाएँ अकर्मक सकर्मक दोनों होती हैं। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-

1. उसका सिर खुजलाता है। (अकर्मक)

2. वह अपना सिर खुजलाता है। (सकर्मक)

3. जी घबराता है। (अकर्मक)

4. विपत्ति मुझे घबराती है। (सकर्मक)

5. बूंद-बूंद से तालाब भरता है। (अकर्मक)

6. उसने आँखें भर के कहा (सकर्मक)

7. गिलास भरा है। (अकर्मक)

8. हमने गिलास भरा है। (सकर्मक)


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