A Blog by CHANDER UDAY SINGH FOR JKBOARD/ CBSE HINDI, English STUDY MATERIAL
Thursday, April 8, 2021
Global Warming class8th Tulip Series
Saturday, February 20, 2021
RUSTUM AND SOHRAB, CLASS 8TH TULIP SERIES BOOK VIII
Rustum And Sohrab
Column A |
Column B |
a. War
cry |
a word or cry shouted
in battle. |
b. Challenger |
one who calls someone
for fight. |
c. Arts of war |
skill in use of
weapons and in fighting. |
d. Champion |
one who fights for or
defends some other person. |
e.
Swordsmanship |
skill in the use of
sword. |
f.
Spirit |
quality of courage and
vigor. |
g.
Terror |
great fear. |
h.
Clasp |
hold tightly. |
i. Amazed |
extremely surprised. |
j.
Ambition |
a strong desire for
success, power or wealth |
Thursday, November 5, 2020
Munshi Premchand -upanyas samraat essay in hindi
उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद पर निबंध
एक हिंदी पाठ- चन्दर उदय सिंह द्वारा
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Munshi Premchand
(जन्म- 31 जुलाई, 1880, मृत्यु- 8 अक्टूबर, 1936)
प्रस्तावना : मुंशी प्रेमचंद भारत के उपन्यास सम्राट माने जाते हैं जिनके युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। जन्म और विवाह : प्रेमचंद का जन्म वाराणसी से लगभग चार मील दूर, लमही नाम के गांव में 31 जुलाई, 1880 को हुआ। प्रेमचंद के पिताजी मुंशी अजायब लाल और माता आनंदी देवी थी। प्रेमचंद का बचपन गांव में बीता था। उनके पिता, मुंशी अजायब लाल, डाकमुंशी थे और उनका वेतन लगभग पच्चीस रुपए मासिक था। उनकी मां आनंद देवी सुंदर, सुशील और सुघड़ महिला थीं।
जब प्रेमचंद पंद्रह वर्ष के थे, उनका विवाह हो गया। सन 1905 के अंतिम दिनों में आपने शिवरानी देवी से शादी कर ली। शिवरानी देवी बाल-विधवा थीं। यह कहा जा सकता है कि दूसरी शादी के पश्चात् इनके जीवन में परिस्थितियां कुछ बदली और आय की आर्थिक तंगी कम हुई। इनके लेखन में अधिक सजगता आई। प्रेमचंद की पदोन्नति हुई तथा यह स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर बना दिए गए।
शिक्षा : गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचंद ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के आरंभ में ही इन्हें गांव से दूर वाराणसी पढ़ने के लिए नंगे पांव जाना पड़ता था। इसी बीच में इनके पिता का देहांत हो गया। प्रेमचंद को पढ़ने का शौक था, आगे चलकर वह वकील बनना चाहते थे, मगर गरीबी ने इन्हें तोड़ दिया। प्रेमचंद ने स्कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहां ट्यूशन ले लिया और उसी के घर में एक कमरा लेकर रहने लगे।
इनको ट्यूशन का पांच रुपया मिलता था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, पर्सियन और इतिहास विषयों से स्नातक की उपाधि द्वितीय श्रेणी में प्राप्त की थी।
साहित्यिक जीवन : प्रेमचंद उनका साहित्यिक नाम था और बहुत वर्षों बाद उन्होंने यह नाम अपनाया था। उनका वास्तविक नाम 'धनपत राय' था। जब उन्होंने सरकारी सेवा करते हुए कहानी लिखना आरंभ किया, तब उन्होंने नवाब राय नाम अपनाया। बहुत से मित्र उन्हें जीवनपर्यंत नवाब के नाम से ही संबोधित करते रहे। जब सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, 'सोजे वतन' जब्त किया, तब उन्हें नवाब राय नाम छोड़ना पड़ा। बाद का उनका अधिकतर साहित्य प्रेमचंद के नाम से प्रकाशित हुआ।
साहित्य की विशेषताएं : प्रेमचंद की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया।
प्रेमचंद की कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की, किंतु प्रमुख रूप से वह कथाकार हैं। उन्हें अपने जीवन काल में ही उपन्यास सम्राट की पदवी मिल गई थी। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, संपादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की।
जिस युग में प्रेमचंद ने कलम उठाई थी, उस समय उनके पीछे ऐसी कोई ठोस विरासत नहीं थी उस समय बंकिम बाबू थे, शरतचंद्र थे और इसके अलावा टॉलस्टॉय जैसे रुसी साहित्यकार थे। उन्होंने गोदान जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की जो कि एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है।
पुरस्कार : मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग की ओर से 31 जुलाई, 1980 को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहां प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गई है। इसके बरामदे में एक भित्तिलेख है। यहां उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है। जहां उनकी एक आवक्षप्रतिमा भी है।
प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर में नाम से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया है, जिससे लोग अनभिज्ञ थे। उनके ही बेटे अमृत राय ने 'कलम का सिपाही' नाम से पिता की जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रूपांतर तो हुए ही हैं, चीनी, रूसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियां लोकप्रिय हुई हैं।
उपसंहार : प्रेमचंद ने अपने जीवन के कई अद्भुत कृतियां लिखी हैं। तब से लेकर आज तक हिंदी साहित्य में ना ही उनके जैसा कोई हुआ है और ना ही कोई और होगा।
अपने जीवन के अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोड़कर उनका पूरा समय वाराणसी और लखनऊ में गुजरा, जहां उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे। 8 अक्टूबर, 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ।
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