Monday, August 10, 2020

Shiksha Mein Khelkood Ka Sthaan Nibandh

कक्षा-10 

हिंदी निबंध। 

A hindi lesson by - Chander Uday Singh


शिक्षा में खेलकूद का स्थान

 

जीवन में स्वास्थ्य का महत्त्व
स्वास्थ्य जीवन की आधारशिला है। स्वस्थ मनुष्य ही अपने जीवन सम्बन्धी कार्यों को भलीभाँति पूर्ण कर सकता है। हमारे देश में धर्म का साधन शरीर को ही माना गया है। अतः कहा गया है

– शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।। -उपनिषद् अर्थ : शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है। अर्थात : शरीर को सेहतमंद बनाए रखना जरूरी है।

इसी प्रकार अनेक लोकोक्तियाँ भी स्वास्थ्य के सम्बन्ध में प्रचलित हो गई हैं; जैसे–’पहला सुख नीरोगी काया’, ‘एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत है’, ‘जान है तो जहान हैआदि। इन सभी लोकोक्तियों का अभिप्राय यही है कि मानव को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। भारतेन्दुजी ने कहा था

दूध पियो कसरत करो, नित्य जपो हरि नाम।
हिम्मत से कारज करो, पूरेंगे सब राम॥

यह स्वास्थ्य हमें व्यायाम अथवा खेलकूद से प्राप्त होता है।

शिक्षा और क्रीडा का सम्बन्ध
यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि शिक्षा और क्रीडा का अनिवार्य सम्बन्ध है। शिक्षा यदि मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है तो उस विकास का पहला अंग हैशारीरिक विकास। शारीरिक विकास व्यायाम और खेलकूद के द्वारा ही सम्भव है। इसलिए खेलकूद या क्रीडा को अनिवार्य बनाए बिना शिक्षा की प्रक्रिया का सम्पन्न हो पाना सम्भव नहीं है।

अन्य मानसिक, नैतिक या आध्यात्मिक विकास भी परोक्ष रूप से क्रीडा और व्यायाम के साथ ही जुड़े हैं। यही कारण है कि प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकीय शिक्षा के साथसाथ खेलकूद और व्यायाम की शिक्षा भी अनिवार्य रूप से दी जाती है।

विद्यालयों में व्यायाम शिक्षक, स्काउट मास्टर, एन०डी०एस०आई० आदि शिक्षकों की नियुक्ति इसीलिए की जाती है कि प्रत्येक बालक उनके निरीक्षण में अपनी रुचि के अनुसार खेलकूद में भाग ले सके और अपने स्वास्थ्य को सबल एवं पुष्ट बना सके।

शिक्षा में क्रीडा एवं व्यायाम का महत्त्वसंकुचित अर्थ में शिक्षा का तात्पर्य पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करना और मानसिक विकास करना ही समझा जाता है, लेकिन व्यापक अर्थ में शिक्षा से तात्पर्य केवल मानसिक विकास से ही नहीं है, वरन् शारीरिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास अर्थात् सर्वांगीण विकास से है।

सर्वांगीण विकास के लिए शारीरिक विकास आवश्यक है और शारीरिक विकास के लिए खेलकूद और व्यायाम का विशेष महत्त्व है। शिक्षा के अन्य क्षेत्रों में भी खेलकूद की परम उपयोगिता है, जिसे निम्नलिखित रूपों में जाना जा सकता है-

() शारीरिक विकासशारीरिक विकास तो शिक्षा का मुख्य एवं प्रथम सोपान है, जो खेलकूद और व्यायाम के बिना कदापि सम्भव नहीं है। प्राय: बालक की पूर्ण शैशवावस्था भी खेलकूद में ही व्यतीत होती है। खेलकूद से शरीर के विभिन्न अंगों में एक सन्तुलन स्थापित होता है, शरीर में स्फूर्ति उत्पन्न होती है, रक्तसंचार ठीक प्रकार से होता है और प्रत्येक अंग पुष्ट होता है। स्वस्थ बालक पुस्तकीय ज्ञान को ग्रहण करने की अधिक क्षमता रखता है; अतः पुस्तकीय शिक्षा को सुगम बनाने के लिए भी खेलकूद और व्यायाम की नितान्त आवश्यकता है।

() मानसिक विकासमानसिक विकास की दृष्टि से भी खेलकूद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन का आधार होता है। इस सम्बन्ध में एक कहावत भी प्रचलित है कितन स्वस्थ तो मन स्वस्थ’ (Healthy mind in a healthy body); अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है।

शरीर से दुर्बल व्यक्ति विभिन्न रोगों तथा चिन्ताओं से ग्रस्त हो मानसिक रूप से कमजोर तथा चिड़चिड़ा बन जाता है। वह जो कुछ पढ़तालिखता है, उसे शीघ्र ही भूल जाता है; अत: वह शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता। खेलकूद से शारीरिक शक्ति में तो वृद्धि होती ही है, साथसाथ मन में प्रफुल्लता, सरसता और उत्साह भी बना रहता है।

() नैतिक विकासबालक के नैतिक विकास में भी खेलकूद का बहुत बड़ा योगदान है। खेलकूद से शारीरिक एवं मानसिक सहनशक्ति, धैर्य और साहस तथा सामूहिक भ्रातृभाव एवं सद्भाव की भावना विकसित होती है। बालक जीवन में घटित होनेवाली घटनाओं को खेलभावना से ग्रहण करने के अभ्यस्त हो जाते हैं तथा शिक्षाप्राप्ति के मार्ग में आनेवाली बाधाओं को हँसतेहँसते पार कर सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाते हैं।

() आध्यात्मिक विकासखेलकूद आध्यात्मिक विकास में भी परोक्ष रूप से सहयोग प्रदान करते हैं। आध्यात्मिक जीवननिर्वाह के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है, वे सब खिलाड़ी के अन्दर विद्यमान रहते हैं। योगी व्यक्ति सुखदुःख, हानिलाभ अथवा जयपराजय को समान भाव से ही अनुभूत करता है।

खेल के मैदान में ही खिलाड़ी इस समभाव को विकसित करने की दिशा में कुछकुछ सफलता अवश्य प्राप्त कर लेते हैं। वे खेल को अपना कर्त्तव्य मानकर खेलते हैं। इस प्रकार आध्यात्मिक विकास में भी खेल का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

() शिक्षाप्राप्ति में रुचिशिक्षा में खेलकूद का अन्य रूप में भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। आधुनिक शिक्षाशास्त्रियों ने कार्य और खेल में समन्वय स्थापित किया है। बालकों को शिक्षित करने का कार्य यदि खेलपद्धति के आधार पर किया जाता है तो बालक उसमें अधिक रुचि लेते हैं और ध्यान लगाते हैं; अत: खेल के द्वारा दी गई शिक्षा सरल, रोचक और प्रभावपूर्ण होती है।

इसी मान्यता के आधार पर ही किण्डरगार्टन, मॉण्टेसरी, प्रोजेक्ट आदि आधुनिक शिक्षणपद्धतियाँ विकसित हुई हैं। इसेखेल पद्धति द्वारा शिक्षा’ (Education by play way) कहा जाता है; अत: यह स्पष्ट है कि व्यायाम और खेलकूद के बिना शिक्षा के लक्ष्यों को प्राप्त करना असम्भव है।

उपसंहार
व्यायाम और खेलकूद से शरीर में शक्ति का संचार होता है, जीवन में ताजगी और स्फूर्ति मिलती है। आधुनिक शिक्षाजगत् में खेल के महत्त्व को स्वीकार कर लिया गया है। छोटेछोटे बच्चों के स्कूलों में भी खेलकूद की समुचित व्यवस्था की गई है। हमारी सरकार ने इस कार्य के लिए अलग सेखेल मन्त्रालय भी बनाया है।

फिर भी जैसी खेलकूद और व्यायाम की व्यवस्था माध्यमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में होनी चाहिए, वैसी अभी नहीं है। इस स्थिति में परिवर्तन आवश्यक है। यदि भविष्य में सुयोग्य नागरिक एवं सर्वांगीण विकासयुक्त शिक्षित व्यक्तियों का निर्माण करना है तो शिक्षा में खेलकूद की उपेक्षा करके उसे व्यावहारिक रूप प्रदान करना होगा।


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Saturday, August 8, 2020

Muhavarey aur Lokoktiyan .......continued

मुहावरे और लोकोक्तियाँ 



.......continued from 160 onwards.




A hindi lesson by - Chander Uday Singh



161. झख मारना-व्यर्थ समय गँवाना/विवश होना।

i. तुम कब से बैठे झख मार रहे हो, जाकर स्नान क्यों नहीं करते?

ii. झख मारकर उसे रुपया देना ही पड़ा।


162. टस से मस न होना—विचलित न होना।

कितनी ही विपत्तियाँ आईं, किन्तु रमेश टस से मस नहीं हुआ। अन्ततः जीत उसी की हुई।


163. टका-सा जवाब देना-साफ इनकार करना।

मैंने कितनी ही बार उसकी सहायता की, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर उसने मुझे टका-सा जवाब देने में तनिक भी संकोच नहीं किया।


164. टपक पड़ना-सहसा बिना बुलाए आ पहुँचना।।

अरे! अभी तुम्हारी ही बात हो रही थी, तुम एकदम कहाँ से टपक पड़े?


165. टाँग अड़ाना-दखल देना।

उसे कुछ आता-जाता तो है नहीं, किन्तु टाँग हर बात में अड़ाता रहता है।


166. टाट उलटना-दिवालिया होने की सूचना देना।

लोगों ने समय-समय पर उसकी बहुत आर्थिक मदद की, किन्तु जब लोगों ने अपनी रकम उससे माँगी तो उसने टाट उलट दिया।


167. टेढ़ी खीर-कठिन कार्य।

परीक्षा में प्रथम श्रेणी के अंक प्राप्त करना टेढ़ी खीर है।


168. टोपी उछालना-इज्जत से खिलवाड़ करना।

कैसे भी प्रिय व्यक्ति को कोई अपनी टोपी उछालने की इजाजत नहीं दे सकता।


169. ठकुरसुहाती करना/कहना-चापलूसी करना।

स्वाभिमानी व्यक्ति भूखा मर जाता है, किन्तु ठकुरसुहाती नहीं करता।


170. ठगा-सा रह जाना—चकित रह जाना।

साईं बाबा के चमत्कार देखकर मैं ठगा-सा रह गया।


171. ठिकाने लगाना-मार डालना।

तुम्हारा मामला है, वरना उस दुष्ट को मैं कब का ठिकाने लगा देता।


172. ठोकर खाना-असावधानी के कारण नुकसान उठाना।

रमेश हमेशा सुरेश को समझाता रहता था कि यदि बुरी राह चलोगे तो ठोकर खाओगे, लेकिन सुरेश न माना।


173. डूबते को तिनके का सहारा-संकट में छोटी वस्तु से भी सहायता मिलना।

भूख के कारण उसके प्राण निकले जा रहे थे। तभी किसी ने उसे एक रोटी देकर मानो डूबते को तिनके का सहारा दिया।


174. ढाई ईंट की मस्जिद अलग बनाना-सार्वजनिक मत के विरुद्ध कार्य करना।

उससे हमारी मित्रता सम्भव नहीं है। वह सदैव ढाई ईंट की मस्जिद अलग बनाता रहता है।


175. ढिंढोरा पीटना-बात का खुलेआम प्रचार करना।

रमा के पेट में कोई बात नहीं पचती, वह तुरन्त बात का ढिंढोरा पीट देती है।


176. ढोल की पोल/ढोल के भीतर पोल—बाहरी दिखावे के पीछे छिपा खोखलापन।

ये स्वामी लोग व्याख्यान तो बहुत सुन्दर देते हैं, परन्तु उनके जीवन को निकट से देखने पर पता चलता है कि ढोल के भीतर भी पोल है।


177. तकदीर फूट जाना—भाग्यहीन होना।

युवावस्था में विधवा होने पर स्त्री की तो मानो तकदीर ही फूट जाती है।


178. तलवे चाटना-खुशामद करना। रमेश में तनिक भी स्वाभिमान नहीं है।

वह सदैव अपने अधिकारी के तलवे चाटता रहता है।


179. तिल का ताड़ करना/बनाना-छोटी-सी बात को बड़ी बनाना।

बात तो बहुत छोटी-सी थी, किन्तु उन्होंने तिल का ताड़ करके आपस में झगड़ा करा दिया।


180. तीन-तेरह करना-गायब करना, तितर-बितर करना।

छापा पड़ने से पहले ही लालाजी ने अपने सारे कागजों को तीन-तेरह कर दिया।


181. तीन-पाँच करना-बहाना बनाना, इधर-उधर की बात करना।

सच-सच बताओ कि बात क्या है? तीन-पाँच करोगे तो अच्छा न होगा।


182. तोते के समान रहना-बात के सार को समझे बिना उसे रट लेना।

वर्तमान शिक्षा-प्रणाली छात्रों को केवल तोते के समान रटना सिखाती है।


183. थाली का बैंगन होना-पक्ष बदलते रहना।

उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता। वह तो थाली का बैंगन है। कभी इस ओर हो जाता है और कभी उस ओर।


184. थूककर चाटना-त्यक्त वस्तु को पुनः ग्रहण करना, कही हुई बात पर अमल न करना।

पहले तो आवेश में तुमने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। अब उसके लिए पुनः आवेदन-पत्र देकर थूककर चाटते क्यों हो?


185. दंग रह जाना—आश्चर्यचकित होना।

बाबा के चमत्कारों को देखकर मैं तो दंग रह गया।


186. दाँत खट्टे करना-हरा देना।

भारतीय सैनिकों ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों के दाँत खट्टे कर दिए।


187. दाँत पीसकर रह जाना-क्रोध रोक लेना।

रमेश की बदतमीजी पर पिताजी को क्रोध तो बहुत आया, किन्तु अपने मित्रों के सामने वे दाँत पीसकर। रह गए।


188. दाँतों तले उँगली दबाना-आश्चर्यचकित होना।

महारानी लक्ष्मीबाई के रणकौशल को देखकर अंग्रेजों ने दाँतों तले उँगली दबा ली।


189. दाने-दाने को तरसना-भूखों मरना।

जिन लोगों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया, उनके बच्चे आज दाने-दाने को तरस रहे हैं।


190. दाल न गलना-युक्ति में सफल न होना।

जब अधिकारी के सामने लिपिक की दाल न गली तो वह निराश होकर लौट आया।


191. दाल में काला होना-दोष छिपे होने का सन्देह होना।

पड़ोसी के घर पुलिस को आया देखकर पिता ने पुत्र से कहा-मुझे तो दाल में कुछ काला लगता है।


192. दिल बाग-बाग होना अत्यधिक प्रसन्न होना।

आपके घर की सजावट देखकर मेरा दिल बाग-बाग हो गया।


193. दिल भर आना-दुःखी होना।

जाड़े की रात में भिखारिन और उसके बच्चे को ठिठुरते हुए देखकर मेरा दिल भर आया।


194. दूध का दूध पानी का पानी-सही और उचित न्याय।।

विक्रमादित्य के राज्य में प्रजा सब प्रकार से सन्तुष्ट थी; क्योंकि उनके यहाँ दूध का दूध पानी का पानी किया जाता था।


195. दूध की नदियाँ बहाना-दूध का जरूरत से अधिक उत्पादन करना/धन-धान्य से परिपूर्ण होना।

श्वेत क्रान्ति भी देश में दूध की नदियाँ न बहा सकी।


196. दूध की मक्खी की तरह निकाल देना-अवांछित, अनुपयोगी व्यक्ति को व्यवस्था से अलग करना।

रामसिंह ने लालाजी की जीवनभर सेवा की, किन्तु उन्होंने बुढ़ापे में उसे दूध की मक्खी की तरह निकाल दिया।


197. दुम दबाकर चल देना-डरकर हट जाना। पुलिस की ललकार सुनकर चोर दुम दबाकर भाग गए।


198. देवता कूच कर जाना—अत्यन्त भयभीत हो जाना, होश गायब हो जाना।

जंगल में अचानक सिंह को अपने सामने देखकर मनमोहन के तो देवता कूच कर गए।


199. दो नावों पर पैर रखना-दो अलग-अलग पक्षों से मिलकर रहना।

जो व्यक्ति दो नावों पर पैर रखकर चलते हैं, वे ठीक मझधार में डूबते हैं।


200. दो टूक बात कहना–स्पष्ट कहना। मोहन किसी से भी नहीं डरता।

वह हर व्यक्ति के सामने उचित बात को दो टूक कह देता है।


201. दो दिन का मेहमान होना-थोड़े दिन रहना।

वकील साहब का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। वे अब दो दिन के मेहमान हैं। इसलिए सब मिलकर उनकी सेवा करें।


202. धूप में बाल सफेद नहीं होना-अनुभवी होना।

तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते, मेरे बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं।


203. नकेल हाथ में होना-नियन्त्रण अपने हाथ में होना।।

चिन्ता न करो, उसकी नकेल मेरे हाथ में है। वह तुम्हारा विरोध नहीं कर सकता।


204. नजर लग जाना—बुरी दृष्टि का प्रभाव पड़ना।

नजर लगने के भय से माताएँ अपने बच्चों के माथे पर दिठौना काजल का टीका. लगा देती हैं।


205. नजर से गिरना-प्रतिष्ठा खो देना।

कुकर्मों के प्रकट होने के बाद प्रवीण सभी की नजरों से गिर गया।


206. नदी-नाव संयोग-आश्रय-आश्रित का सम्बन्ध।

कर्मचारी के हितों के नाम पर यूनियन के नेता फैक्ट्री में तालाबन्दी की बात कर रहे हैं, अब भला कोई उनसे पूछे फैक्ट्री और कर्मचारी में नदी-नाव का संयोग होता है, फिर तालाबन्दी से कर्मचारियों का कल्याण कैसे हो सकता है।


207. नमक-मिर्च लगाना-बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना।

कुछ लोगों की आदत होती है कि वे हर बात को नमक-मिर्च लगाकर ही कहते हैं।


208. नमकहरामी करना-कृतघ्नता करना।

यदि कोई व्यक्ति हमारी भलाई करता है तो हमें उसका कृतज्ञ होना चाहिए, किन्तु बहुत-से व्यक्ति सरासर नमकहरामी करते हैं।


209. नहले पे दहला चलना-अकाट्य दाँव चलना।

बड़ी संख्या में सवर्णों को विधानसभा-टिकट देकर सुश्री मायावती ने ऐसा नहले पे दहला चला कि उन पर दलित राजनीति करने का आरोप लगानेवाले चारों खाने चित्त हो गए।


210. नाक कटना-बेइज्जती होना।

बेटे के चोरी करते पकड़े जाने पर निखिल के पिता की नाक कट गई।


to be continued.....


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Friday, August 7, 2020

pollution essay in hindi

कक्षा-10 

हिंदी निबंध। 

A hindi lesson by - Chander Uday Singh

 



प्रदूषण एक समस्या / प्रदूषण की समस्या


प्रस्तावना: विज्ञान के इस युग में मानव को जहां कुछ वरदान मिले है, वहां कुछ अभिशाप भी मिले हैं। प्रदूषण एक ऐसा अभिशाप हैं जो विज्ञान की कोख में से जन्मा हैं और जिसे सहने के लिए अधिकांश जनता मजबूर हैं।

प्रदूषण का अर्थ: प्रदूषण का अर्थ है -प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना। प्रदूषण कई प्रकार का होता है! प्रमुख प्रदूषण हैं - वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण ।

वायु-प्रदूषण : महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। मुंबई की महिलाएं धोए हुए वस्त्र छत से उतारने जाती है तो उन पर काले-काले कण जमे हुए पाती है। ये कण सांस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में चले जाते हैं और असाध्य रोगों को जन्म देते हैं! यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।

जल-प्रदूषण : कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है।

ध्वनि-प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।

प्रदूषणों के दुष्परिणाम: उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। गंदे जल के कारण कई बीमारियां फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुंचकर घातक बीमारियां पैदा करती हैं। भोपाल गैस कारखाने से रिसी गैस के कारण हजारों लोग मर गए, कितने ही अपंग हो गए। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।

प्रदूषण के कारण : प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। प्राकृतिक संतुलन का बिगड़ना भी मुख्य कारण है। वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।

सुधार के उपाय : विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए चाहिए कि अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचना चाहिए।


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