Thursday, August 12, 2021

स्वतंत्रता-दिवस ( 15 अगस्त)

स्वतंत्रता-दिवस ( 15 अगस्त)

रूपरेखा:-
1. भूमिका, स्वाधीनता के लिए संघर्ष
2. मनाने की तिथि तथा कारण
3. मनाने का पूर्ण विवरण
4. मनाने का महत्त्व
5. उपसंहार


“शहीदों की चिताओं पर, लगेंगे हर बरस मेले। वतन पर मिटने वालों का, यही बाकी निशां होगा।।”


भूमिका

कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाला हमारा महान देश अपने राजाओं की आपसी फूट के कारण वर्षों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा। भारत में असंख्य विदेशी घुस आए और यहाँ का संपूर्ण बहुमूल्य सामान ले गए। धीरे-धीरे उन्होंने यहाँ अपने पाँव जमा लिए और हमारे देश में अपना शासन शुरू कर दिया। अंग्रेजों की दोहरी नीति थी। “फूट डालो और राज करो” की नीति के चलते उनके विरुद्ध सन् 1857 से 1947 तक लगभग 100 वर्षों तक लगातार देशवासी संघर्ष करते रहे। इस दौरान कई भारतवासी अंग्रेजों की गोलियों का शिकार बने और न जाने कितने देशवासियों को कठोर यातनाएँ सहनी पड़ीं। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करके कई वीर सपूत शहीद हो गए। झाँसी की रानी, मंगल पांडे, तात्या टोपे से लेकर लाला लाजपत राय, तिलक, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी जैसे अनेक देशभक्तों के अथक प्रयासों से 15 अगस्त, 1947 को हमें विदेशी शासन से मुक्ति मिली।


मनाने के कारण

15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत की राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहराया था। इसी दिन से प्रत्येक वर्ष यह परंपरा चली आ रही है। मनाने का रूपः- स्वतंत्रता-दिवस वैसे तो देश के प्रत्येक कोने में उत्साह के साथ मनाया जाता है, परंतु दिल्ली में इस राष्ट्रीय पर्व को विशेष उल्लास के साथ मनाया जाता है। पूरे देश में इस दिन सरकारी इमारतों, स्कूलों, कॉलेजों, अन्य निजी कार्यालयों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जाता है। राजधानी में तथा प्रत्येक राज्य में प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं तथा देश के अमर शहीदों को उनकी समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इस दिन देश में सार्वजनिक अवकाश रहता है। दिल्ली की ऐतिहासिक इमारत लाल किले पर ध्वजारोहण 15 अगस्त के दिन प्रतिवर्ष सुबह से ही हजारों लोग एकत्रित होने लगते हैं। ठीक प्रातः साढ़े सात बजे देश के प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अपने देशवासियों को संदेश देते हैं जिसमें वे सरकार की विभिन्न गतिविधियों से जनता को अवगत कराते हैं। इस दिन पहले सुबह राष्ट्रगान गाया जाता है फिर तुरंत बाद देश की गरिमा के लिए इक्कीस तोपों की सलामी दी जाती है। रात्रि में देश के सभी सरकारी कार्यालयों पर प्रकाश की अच्छी व्यवस्था की जाती है। 

उपसंहार

हमें अपने देश की स्वाधीनता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। इस दिन हमें एक जगह एकत्रित होकर अपने शहीदों को नमन करना चाहिए। हमें अपने देश में सभी धर्मों का सम्मान करना चाहिए तथा प्रत्येक व्यक्ति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए। इस प्रकार देश में शांति और भाईचारा बना रहेगा और देश प्रगति कर सकेगा।


Saturday, August 7, 2021

Online Shiksha Ke Laabh Tatha Haaniya

ऑनलाइन शिक्षा पर निबंध


ऑनलाइन शिक्षा, शिक्षा का ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से घर बैठे शिक्षक इंटरनेट के माध्यम से देश के किसी भी कोने या प्रांत से बच्चों को पढ़ा सकते है। इस में शिक्षक और विद्यार्थी अपने सहूलियत के अनुसार वक़्त का चुनाव कर ऑनलाइन जुड़ जाते है। शिक्षक स्काइप ,व्हाट्सप्प ,और ज़ूम वीडियो कॉल के माध्यम से बच्चो को आसानी से पढ़ा सकते है।

आज कोविड 19  के लॉकडाउन के तहत हमे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उसमे सर्वप्रथम  है बच्चो की शिक्षा। ऑनलाइन यानी दूरस्थ शिक्षा ने लॉकडाउन में चल रही इस मुश्किल को आसान कर दिया है। अब विद्यालय के निर्देशों के अनुसार शिक्षक बच्चो को घर से ऑनलाइन पढ़ा रहे है ताकि शिक्षा में बाधा ना पड़े।ऑनलाइन शिक्षा एक अलग तरह की प्रणाली है जहाँ शिक्षक विभिन्न प्रकार के टूल्स का उपयोग कर शिक्षा को आसान बना देते है।

ऑनलाइन शिक्षा के फायदे:

शिक्षक के साथ अधिक नियमित संपर्क

जैसा कि हमारे ऑनलाइन छात्र स्काइप ,appearin और गूगल क्लासरूम के माध्यम से अपने शिक्षक के संपर्क में आते है । छात्र अक्सर अपने फ़ोन के मदद से शिक्षकों से हर समय संपर्क साध लेते है। संचार की प्रगति के कारण छात्रों को लाभ होता है क्यों कि ट्यूशन केवल साप्ताहिक एक घंटे के सत्र की  तुलना में निरंतर संवाद का अधिक हो सकता है।ऑनलाइन संसाधनों जैसे गूगल मैप्स , गूगल एअर्थ ,वेबसाइट चित्र और वीडियो के माध्यम से ऑनलाइन पाठ पढ़ाना रोचक हो गया है।

बेहतर फ्लेक्सिबिलिटी

ऑनलाइन ट्यूशन के साथ अंतिम मिंटो के समय में परिवर्तन आ सकता है। शिक्षक जब चाहे  तब क्लास रख सकता है और स्थगित भी कर सकता है। इसमें यात्रा नहीं करनी पड़ती है और काफी समय बच जाता है।ऑनलाइन स्क्रीन शेयरिंग का उपयोग करके विषयो को समझना आसान हो गया है। ऑनलाइन शिक्षा एक उत्कृष्ट शिक्षा का उदहारण है।

प्रौद्योगिकी ने शिक्षण व्यस्था में बदलाव लाया

ऑनलाइन ट्यूशन की सबसे अधिक आपको शिक्षण संबंधित विकल्प देता है। ऑनलाइन व्हाइटबोर्ड का उपयोग ,फाइल ,लिंक और वीडियो भेजने के कारण शिक्षक अपनी रचनात्मक शिक्षा को विद्यार्थियों तक पहुंचा सकता है। इसमें शिक्षक को विभिन्न प्रकार से बच्चों को पढ़ाने का भरपूर मौका मिलता है।

प्रभावी शिक्षा

ऑनलाइन ट्यूशन के कारण यात्रा नहीं करनी पड़ती है। इससे समय की बचत हो जायेगी। इंटरनेट का आसानी से उपलब्ध होना ऑनलाइन शिक्षा के लिए वरदान के रूप में साबित हुआ है।

किसी भी समय पर शिक्षा

किसी भी वैश्विक स्थान और अजीब समय ऑनलाइन  पर पाठ पढ़ाया जा सकता है। आपको सिर्फ केवल एक उपकरण जैसे कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्शन की ज़रूरत होती है।

ऑनलाइन शिक्षा के नुकसान:

बच्चे बिगड़ जाते है

ऑनलाइन ट्यूशन करने से कुछ बच्चे बिगड़ जाते है। ऑनलाइन ट्यूशन बच्चो को ऑफलाइन ट्यूशन के मुकाबले कम समय के लिए शिक्षा प्रदान करता है। सिर्फ एक तरफा अध्यापक बच्चो को पढ़ाता है ,उसमे बच्चा ज़्यादा समय के लिए  क्लासवर्क नहीं कर पाता है। ऑफलाइन शिक्षक बच्चे को नैतिक शिक्षा प्रदान करता है जब कि ऑनलाइन शिक्षण में ऐसा नहीं हो पाता है।

अच्छी इंटरनेट का होना अनिवार्य

ऑनलाइन ट्यूशन को अच्छे नेटवर्क की आवश्यकता होती है। जहाँ नेटवर्क नहीं है वहां ऑनलाइन शिक्षा कराना मुश्किल है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में लोग  के पास  तीव्र गति वाले इंटरनेट की सुविधा नहीं होती है। इसलिए वहां ऑनलाइन शिक्षा अभी भी वहां उपलब्ध नहीं है।

शिक्षा के लिए पर्याप्त योजना का अभाव

जब पहले बच्चे निजी ट्यूटर के पास पढ़ते थे तब बच्चा एक अध्ययन सूची के मुताबिक ,निश्चित अवधि के लिए पुस्तकों के साथ  पढ़ने बैठता था। यह वर्षो तक चली आ रही परंपरा है। ऑनलाइन शिक्षा एक तहत ऐसी कोई विशेष शिक्षा सूची तैयार नहीं हुई है। बच्चे स्कूल में जितने अनुशासित रह सकते है। ऑनलाइन क्लासेज में इतने गंभीर नहीं होते है।

ठीक से छात्रों को ना समझ पाना

समान्यतः एक शिक्षक कक्षा में आपको सीधे तरीके से समझ सकता है। कक्षा में आपकी बोल चाल और आपकी प्रतिक्रिया देखकर समझ सकता है कि आप विषय को कितना समझ पा रहे है। आपकी बॉडी लैंग्वेज को पढ़ सकता है और उसके आधार पर आपको समझा सकता है। दूसरी ओर ऑनलाइन शिक्षा में प्रत्यक्ष रूप से आमने सामने बात करने का मौका नहीं मिलता है। छात्रों को समझने और प्रगति की निगरानी ऑनलाइन शिक्षा के द्वारा कठिन होता है।

प्रतिस्पर्धा का माहौल ठीक से उतपन्न ना होना

ऑनलाइन शिक्षा में छात्रों का दल नज़र नहीं आता है। अगर किसी छात्र के साथ बाकी के छात्र भी उसके साथ पढ़ते है। अगर एक साथ पढ़ते तो और ज़्यादा पढ़ाई में रुचि उत्पन्न करता है । हमने अक्सर देखा है कि छात्र जब समूह में पढ़ते है तो वह अधिक सतर्क होते है। बच्चे अपनी काबिलियत साबित करने के लिए ज़्यादा मेहनत करते है और प्रतिस्पर्धा का माहौल रहता है। यह माहौल ऑनलाइन शिक्षा में नहीं मिल पाता है।

प्रैक्टिकल यानी व्यवहारिक  शिक्षा का अभाव

व्यवहारिक अनुभव को शिक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बताया जाता है। ऑनलाइन शिक्षा में ज़्यादातर व्यवहारिक अनुभव का अभाव है। ऑनलाइन शिक्षा में एनिमेटेड वीडियो और अभ्यास वीडियोस का उपयोग किया जाता है। स्कूल में शिक्षक भौतिक वस्तुओं का उपयोग करके छात्रों को पढ़ाते  है। यह व्यवहारिक  स्पर्श ,गहरी समझ अध्ययन में विशेष रूचि उतपन्न करता है। ऑनलाइन शिक्षा में व्यवहारिक ज्ञान की अनुपस्थिति होती है।

उत्साह की कमी

मानव एक समाजिक प्राणी है और ऑनलाइन ट्यूशन की तुलना में छात्र स्वाभाविक  सीधे ट्यूशन में अधिक रुचि रखता है। कभी कभी बच्चे ऑनलाइन  टुइशनस में उत्साह नहीं ले पाते है। स्कूलों और कॉलेजों में टोप्पेर्स और अन्य छात्रों को प्रोत्साहित करने के लिए  प्रतियोगिता करवाए जाते है जिसके लिए उन्हें पुरस्कार दिए जाते है और उत्साह बनी रहती है। ऑनलाइन ट्यूशन में इन चीज़ो की कमी होती है।

आत्म मूल्यांकन की कमी

स्कूलों में बच्चो की योग्यता को जानने के लिए परीक्षाएं और होमवर्क इत्यादि दी जाती है। जिससे शिक्षक जान सकते है कि बच्चे कहाँ पिछड़ गए और कितना जान पाए। बच्चे भी आपने आपको इसके द्वारा भली भाँती परख सकते है। ऑनलाइन शिक्षा में आत्म मूल्यांकन की कमी नज़र आती है। ऑनलाइन शिक्षा में बच्चे इ पुस्तक पढ़ते है  जब कि स्कूलों में विद्यार्थी विभिन्न प्रकार की पुस्तकों से रूबरू होते है।

अनुशासन की कमी

स्कूल में छात्र हमेशा अनुशासन का पालन करते है और एक निर्धारित समय अपना कक्षा कार्य और गृह कार्य पूरा करते है। लेकिन ऑनलाइन शिक्षा में निश्चित अनुशासन का पालन नहीं किया जाता है।

निष्कर्ष :

ऑनलाइन शिक्षा के सभी तरह के पहलु है। लेकिन यह कहना गलत न होगा कि लॉकडाउन में ऑनलाइन शिक्षा ने बच्चो ,शिक्षको और शिक्षा संगठनों की काफी मदद की है और शिक्षा के आदान प्रदान को रुकने नहीं दिया। प्रौद्योगिकी ने इतनी उन्नति कर ली है कि हम घर से और दुनिया के किसी भी  कोने में बैठकर इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर सकते है।

Saturday, July 31, 2021

Sandhi Hindi Vyakaran For class 6th

संधि 

कक्षा 6 हिंदी व्याकरण 

संधि का अर्थ है-मेल। जब दो वर्णों मेल से उनके मूल रूप में जो परिवर्तन या विकार आ जाता है, वह संधि कहलाता है; जैसे-

नर + ईश = नरेश

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी

उपर्युक्त उदाहरणों में पहले शब्द के अंतिम वर्ण तथा दूसरे शब्द के पहले वर्ण के मेल में परिवर्तन आ गया है। यही परिवर्तन संधि है।


संधि विच्छेद – संधि का अर्थ है-मिलना, विच्छेद का अर्थ है-अलग होना। दो वर्णों के मेल से बने नए शब्द को वापस पहले की स्थिति में लाना संधि विच्छेद कहलाता है; जैसे–

विद्यालय = विद्या + आलय

सूर्योदय = सूर्य + उदय

संधि के भेद – संधि के तीन भेद होते हैं।

(क) स्वर संधि

(ख) व्यंजन संधि

(ग) विसर्ग संधि।

(क) स्वर संधि – स्वर संधि यानी स्वरों का मेल। दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं; जैसे– महा + आत्मा = महात्मा, हिम + आलय = हिमालय।

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं


दीर्घ संधि

गुण संधि

वृधि संधि

यण संधि

अयादि संधि

1. दीर्घ संधि – जब ह्रस्व या दीर्घ स्वर के बाद ह्रस्व या दीर्घ स्वर आएँ, तो दोनों के मेल से दीर्घ स्वर हो जाता है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं; जैसे

परम + अर्थ = परमार्थ

सार + अंश = सारांश

न्याय + अधीश = न्यायधीश

देह + अंत = देहांत

मत + अनुसार = मतानुसार

भाव + अर्थ = भावार्थ


अ + आ = आ


हिम + आलय = हिमालय

छात्र + आवास = छात्रावास

आ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय, शिव + आलय = शिवालय।

इ + इ = ई – अभि + इष्ट = अभीष्ट, हरी + इच्छा = हरीच्छा।

इ + ई = ई – हरि + ईश = हरीश, परि + ईक्षा = परीक्षा।

ई + इ = ई – शची + इंद्र = शचींद्र, मही + इंद्र = महेंद्र।

ई + ई = ई – रजनी + ईश = रजनीश, नारी + ईश्वर = नारीश्वर

उ + उ = ऊ – भानु + उदय = भानूदय, लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

उ + ऊ = ऊ – लघु + ऊर्मि = लघूर्मि,

ऊ + ऊ = ऊ – भू+ उर्जा = भूर्जा, भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व


2. गुण संधि – अ/आ का मेल इ/ई से होने पर ए, उ + ऊ से होने पर ओ तथा ऋ से होने पर अर् हो जाता है। इसे गुण संधि कहते हैं; जैसे

अ/आ + इ + ई = ए – नर + इंद्र = नरेंद्र, नर + ईश = नरेश।

अ/आ + उ + ऊ = ओ – पर + उपकार = परोपकार, महा + उत्सव = महोत्सव।

अ/आ + ऋ + ऋ = अर – देव + ऋषि = देवर्षि, महा + ऋषि = महर्षि। 

3. वृधि संधि – वृधि संधि में अ या आ के बाद यदि ए या ऐ हो तो दोनों का ‘ऐ’ होगा। यदि अ या आ के बाद ओ या आ

आए तो दोनों का ‘ओ’ होगा; जैसे

अ + आ + ए/ऐ = ऐ

एक + एक = एकैक, सदा + एव = सदैव

अ/आ + ओ + औ = औ = वन + औषधि = वनौषधि, जल + ओध = जलौध। 

4. यण संधि – इ अथवा ई के बाद इ और ई को छोड़कर यदि कोई अन्य स्वर हो तो ‘इ’ अथवा ई के स्थान पर य् उ अथवा ऊ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उनके स्थान पर ‘व’ और ‘ऋ’ को छोड़कर कोई अन्य स्वर हो तो उसके स्थान पर ‘र’ हो जाता है। इसे यणसंधि कहते हैं; जैसे

अति + अधिक = अत्यधिक, यदि + अपि = यद्यपि

5. अयादि संधि – यदि पहले शब्द के अंत में ए/ऐ, ओ/औ एक दूसरे के शब्द के आरंभ में भिन्न स्वर आए तो क्रमशः ए का अय, ऐ का आय, ओ का अव, तथा औ का आव हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं; जैसे

ने + अक = नायक, भो + अन = भवन

पौ + अक = पावक, भौ + अक = भावुक 

(ख) व्यंजन संधि – व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, वह व्यंजन संधि कहलाता . है; जैसे

सम + कल्प = संकल्प, जगत+ ईश = जगदीश।

व्यंजन संधि के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-

(क) कवर्ग का तृतीय वर्ण-वर्गों के प्रथम वर्ण से परे वर्गों का तृतीय, चतुर्थ वर्ण कोई स्वर अथवा य, र, ल, वे, ह आदि वर्गों में से कोई वर्ण हो तो पहले वर्ण को अपने वर्ग का तृतीय वर्ण हो जाता है; जैसे।

दिक् + अंबर = दिगंबर, सत् + धर्म = सद्धर्म ।

(ख) खवर्ग का पंचम वर्ग-वर्ग के प्रथम या तृतीय वर्ण से परे पाँचवा वर्ण हो, तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवा वर्ण हो जाता है; जैसे

वाक् + मय = वाङ्मय, सत् + मार्ग = सन्मार्ग

जगत् + नाथ = जगन्नाथ, चित् + मय = चिन्मय।

(ग) त के बाद ज या झ हो तो ‘त’ के स्थान पर ‘न’ हो जाता है; जैसे

सत् + जन = सज्जान, विपत् + जाल = विपज्जाल, जगत् + जननी = जगज्जननी

(घ) त् के बाद ङ या ढ़ हो तो ‘त्’ के स्थान पर ‘ड’ हो जाता है; जैसे

उत् + डयन = उड्डयन, वृहत + टीका = वृहट्टीका। 

(ङ) त् के बाद ल हो तो ‘त’ के स्थान पर ‘ल’ हो जाता है; जैसै

तत् + लीन = तल्लीन, उत् + लेख = उल्लेख

(च) त् के बाद श हो तो ‘त्’ के स्थान पर ‘च्’ और ‘श’ के स्थान पर ‘छ’ हो जाता है; जैसे

उत् + श्वास = उच्छवास, तत् + शिव = तच्छिव


(छ) यदि त्’ के बाद च्, छ हो तो ‘त्’ का ‘च’ हो जाता है; जैसे

उत् + चारण = उच्चारण, सत् + चरित्र = सच्चरित्र


(ज) त् के बाद ह हो तो ‘त्’ का ‘द्’ और ह का ‘ध’ हो जाता है; जैसे

उत् + हार = उद्धार, तत् + हित = तधित

 

(झ) ‘म’ के बाद कोई स्पर्श व्यंजन हो तो ‘म्’ का अनुस्वार या बाद वाले वर्ण के पंचम हो जाता है; जैसे

अहम् + कार = अहंकार, सम् + तोष = संतोष


(ज) “म्’ के बाद य, र, ल, व, स, श, ह हो, तो म् अनुस्वार हो जाता है; जैसे

सम् + योग = संयोग, सम् + वाद = संवाद, सम् + हार = संहार

अपवाद-यदि सम् के बाद ‘राट्’ हो तो म् का म् ही रहता है। जैसे

सम् + राट = सम्राट


(ट) “छ’ से पूर्व स्वर हो तो ‘छ’ से पूर्व ‘च’ आ जाता है।

परि + छेद = परिच्छेद, आ + छादन् = अच्छादन।


(ठ) ह्रस्व स्वर ‘इ’ उ के बाद यदि ‘र’ के बाद फिर ‘र’ हो तो ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाता है। ‘र’ का लोप हो जाता है; जैसे

निर + रस = नीरस, निर + रोग = नीरोग


(ड) न् का ‘ण’ होना–यदि ऋ र, ष के बाद ‘न’ व्यंजन आता है तो ‘न’ का ‘ण’ हो जाता है; जैसे

राम + अयन = रामायण, परि + नाम = परिणाम


(ढ) ह्रस्व के बाद ‘छ’ हो तो उसके पहले ‘च’ जुड़ जाता है। दीर्घ स्वर में विकल्प होता है।

परि + छेद = परिच्छेद, शाला + छादन = शालाच्छादन


कुछ अन्य उदाहरण


क् + ग् – वाक् + ईश = वागीश, दिक + अंत = दिगंत।

त् + ६ – तत् + भव = तद्भव, भगवत् + गीता = भगवदगीता ।

छ संबंधी नियम – स्व + छेद = स्वच्छेद, परि + छेद = परिच्छेद।

म संबंधी नियम – सम् + गति = संगति, सम् + तोष = संतोष।


(ग) विसर्ग संधि – विसर्ग का किसी स्वर या व्यंजन से मेल होने पर जो विकार (परिवर्तन) होता है वह विसर्ग संधि कहलाता है; जैसे 

(क) विसर्ग के पहले ‘अ’ हो और बाद में कोई घोष व्यंजन, वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवा वर्ण (य, र, ल, व, ह) हो तो ।

विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है। जैसे–

मनः + बल = मनोबल, मनः + रंजन = मनोरंजन, मनः + हर = मनोहर।


(ख) विसर्ग के बाद यदि च, छ हो, तो विसर्ग का ‘श’ हो जाता है; जैसे

निः + चिंत = निश्चित, निः + छल = निश्छल, दु: + चरित्र = दुश्चरित्र।


(ग) विसर्ग के बाद यदि ट, ठ हो तो विसर्ग का.ष हो जाता है; जैसे

धनुः + टंकार = धनुष्टंकार


(घ) विसर्ग के बाद यदि त, थ हो तो विसर्ग का ‘स’ हो जाता है; जैसे

दुः + तर = दुस्तर, नमः + ते = नमस्ते ।

(ङ) यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ और ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आए और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवा वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो तो विसर्ग के बाद कोई स्वर हो या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवा वर्ण हो या य, र, ले,व, ह हो, तो विसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है; जैसे

निः + बल = निर्बल, निः + लोभ = निर्लोभ, निः + विकार = निर्विकार।

 

(च) विसर्ग से परे श, ष, स हो तो विसर्ग के विकल्प से परे वाले वर्ण हो जाता है।

निः + संदेह = निस्संदेह, दु: + शासन = दुश्शासन

(छ) यदि विसर्ग के पहले इकार या उकार आए और विसर्ग के बाद का वर्ण क, ख, प, फ, हो तो विसर्ग का ष हो जाता है; जैसे

निः + कपट = निष्कपट, दुः + कर = दुष्कर।


(ज) यदि विसर्ग के बाद ‘अ’ न हो तो विसर्ग का लोप हो जाएगा; जैसे

अतः + एव = अतएव


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