Thursday, April 16, 2020

हमारा प्यारा भारत वर्ष- जयशंकर प्रसाद (अभ्यास) A hindi lesson by Chander Uday Singh


हमारा प्यारा भारत वर्ष 


अभ्यास

भाव सौंदर्य


प्रश्न 1. कवि ने भारत को हिमालय का आंगन क्यों कहा है?

उत्तर1. कवि ने भारत को हिमालय का आंगन इस लिए कहा है क्योंकि हिमालय पर्वत उत्तर की ओर से भारत को  पूरी तरह से घिरे हुए हैं और जब भोर होती है तो मानो ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपनी लाली हिमालय के आंगन में बिखेर रहा है

 प्रश्न 2. भारत का कौन सा सम्राट बौद्ध भिक्षु बन गया था?

उत्तर2. राजकुमार सिद्धार्थ जो कि गौतम बुध के नाम से प्रसिद्ध हुए बौद्ध भिक्षु बन गए थे


प्रश्न 3.  किस यवन यूनानी राजा को भारत में दया का दान मिला था?

उत्तर3.  यवन शासक सेल्यूकस निकेटर को युद्ध में पराजित करने के बाद भी चंद्रगुप्त ने उसे मौत की सजा नहीं दी इस तरह यवन युद्ध में परास्त हो गए फिर भी भारत के सम्राट ने उसे दया का दान दिया था।


प्रश्न 4. निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए

(क) ज्ञान का प्रकाश सबसे पहले भारत में फैला।

आशय निम्नलिखित वाक्य में कवि यह कहना चाहते हैं के सभ्यता सबसे पहले भारत में ही शुरू हुई और सबसे पहले यहां पर ज्ञान का उदय हुआ यही भारत की भूमि है जिसने सारे संसार में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके सभी को जागृत किया

(ख) भारत हमारा मूल स्थान है हम बाहर से नहीं आए

आशय-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहना चाहते हैं कि हम इसी देश के रहने वाले थे हम कहीं बाहर से नहीं आए थे। हम इसी भारत की संतान हैं अर्थात हम ही आर्य हैं जिस सभ्यता का भारत में उदय हुआ हम उन्हीं की संतान हैं

(ग). शक्तिशाली होकर भी हमने विनम्रता नहीं छोड़ी

आशय-  प्रस्तुत पंक्तियों का आशय यह है कि भारत वीरों की भूमि सदैव से रहा है किंतु आज तक कभी भी हम भारतीयों ने किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया यवन के राजकुमार सेल्यूकस निकेटर को भी जीतकर हमने उसे माफ कर दिया था

(घ) हमारे देश में अतिथि का सत्कार देवता के समान होता है।

आशय- प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं कि हमारे देश में अतिथि देवता के समान है हमारे यहां अतिथि को देवताओं के समान समझा जाता है और उनका आदर सत्कार देवताओं के समान किया जाता है। तभी तो भारतवर्ष में 'अतिथि देवो भव:'  के नाम से यह बात विख्यात है

(ड॰) हम भारतवर्ष के लिए सब कुछ भेंट कर दें।

आशय-  प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहते हैं कि कि आज हम सभी भारतवासी देश के गौरव एवं उसकी अस्मिता को बरकरार रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं हमें इस गौरवशाली भूमि पर अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए और हम इस पर अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए सदैव तत्पर हैं, रहे थेरहे हैं और रहेंगे


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Wednesday, April 15, 2020

Hamara pyara bharatvarsh

Hamara pyara bharatvarsh

हमारा प्यारा भारत वर्ष- जयशंकर प्रसाद 

A hindi lesson by Chander Uday Singh

जयशंकर प्रसाद (अंग्रेज़ीJaishankar Prasad , जन्म:30 जनवरी1889वाराणसीउत्तर प्रदेश - मृत्यु:15 नवम्बर1937हिन्दी नाट्य जगत् और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे।





हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार
उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक-हार
भारत की महिमा का गुणगान करते हुए कवि जयशंकर प्रसाद कहते हैं कि हिमालय पर्वत के आंगन में 
उषा ने हंसकर किरणों का उपहार दिया उषा ने इस देश का अभिनंदन करते हुए इसे हीरो का हार पहनाया अर्थात सूर्य उदय होने से कुछ पल पहले उषा रूपी किरणों का हिमालय के आंगन में आगमन हुआ।भारत देश में उदित होने वाली उषा अपने साथ सुनहरी किरणों को लेकर आई। मानव वह भारत का अभिनंदन कर उसे हीरो का हार पहना रही हो।


जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक
व्योम-तम पुँज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक 
उषा के उदित होते ही सभी भारतीय ज्ञान रूपी चरणों के साथ नींद से जाग गए। वह सिर्फ जागे नहीं, बल्कि उन्होंने दुनिया में व्याप्त अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके सभी को जगाया। इसी तरह समस्त संसार में ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाने का पुनीत कार्य भी किया। भारतीयों के इसी श्रेयस्कर कार्य के कारण ही विश्व रूपी आकाश में फैला हुआ अंधकार नष्ट हुआ और इस तरह समस्त संसार के शोक, दुख आदि का अंत हुआ।


विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम

भारत पर कई बार विदेशियों ने हमला किया । फिर भी भारत की अखंडता कायम रही। इन युद्धों में भारत की जीत हुई  भारत ने सभी को सिखलाया कि यह सिर्फ लोहे की जीत नहीं बल्कि यह जीत हमारे धर्म की है। धर्म का ठीक से पालन करने में ही व्यक्ति की जीत है इससे बढ़कर कोई दूसरी जीत नहीं हो सकती भारत ने दुनिया के सामने कई आदर्श रखे हैं। जैसे कि राजकुमार गौतम बुध बौद्ध भिक्षु हो गए और उन्होंने जगह-जगह जाकर सभी को दीक्षा दी और दया का पाठ सिखलाया।



यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि

भारत देश ने वानों पर दया दिखलाई। भारत ही वह देश है जहां यवन शासक सेल्यूकस निकेटर को युद्ध में पराजित करने के बाद भी चंद्रगुप्त ने उसे मौत की सजा नहीं दी।यवन युद्ध में परास्त हो गएफिर भी भारत के वीर क्षत्रियों ने उन्हें दया के रूप में जीवनदान दिया। आज चीनजापान आदि में जो धर्म उन्नति निरंतर फैल रही है वह भारत की ही देन है आखिरहमारी इस स्वर्ण भूमि को भगवान गौतम बुद्ध के रूप में अनमोल रतन जो मिल गया थागौतम बुध के मार्गदर्शन में बौद्ध भिक्षुओं ने र्मा के लोगों को बौद्ध धर्म  उसके त्रिरत्न (बुधसंघ, धम) का ज्ञान कराया। उन्होंने ही श्रीलंका को पंचशील झूठ ना बोलना, चोरी ना करनानशा ना करना, हिंसा ना करनापाप ना करना आदि का ज्ञान कराया हमारे देश में ही सिंघल अर्थात श्रीलंका को शील रूपी मूल्य दिया कमा जिसका अनुकरण करके वहां के लोगों ने अपनी चतुर्दिक प्रगति की।


किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं


भारत की प्रकृति की अनोखी छटा निराली है यहां की प्रकृति इतनी 

उदात्त है कि उसने हमें हम सभी को इतना सब कुछ दे दिया है कि हमें किसी से कुछ 
मांगने की परिस्थिति निर्मित नहीं होती।अतः हमें किसी से कुछ मांगने की या किसी से कुछ 
छीनने की आवश्यकता ही नहीं पैदा हुई हम सब आर्य हैं हम यहां पर
 किसी अन्य स्थान से नहीं आए थेबल्कि इस पवित्र देश में ही हमारा जन्म
 हुआ था, सो हमारी जन्मभूमि भी यही है।




चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न
भारत माता के पुत्र चरित्रवान रहे हैं। उनकी भुजाओं में शक्ति रही है और वह हमेशा नम्रता पूर्वक व्यवहार करते रहे हैं उनके ह्रदय में देश के गौरव के लिए अपार श्रद्धा  देश प्रेम की भावना रही है। अपने इन गुणों के कारण वे किसी को भी विपन या दी नहीं देख सकते। दीन दुखियों की मदद के लिए वे सदैव तत्पर रहे हैं। मानव सेवा ही उनका परम ध्येय रहा है






हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव
कवि के मतानुसार भारत देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था हमारे पास धन-धान्य की कमी नहीं थी। इसी कारण दान करने में हम पीछे नहीं हटे। अतिथि देवो वः की संकल्पना का भारत वासियों ने पालन किया। भारत माता के पुत्र वचन को महत्व देते थे  जैसा कहते थे,  वैसा करते भी थे। उनके वचनों में सत्यता थी , ह्रदय में तेज था और उनकी प्रतिज्ञा भी दृढ़ हुआ करती थी।


वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान
हम भारतवासी अपने अतीत के गौरव को कैसे भूल सकते हैं,  आज इतने युगों बाद भी हम उसी भारत देश के निवासी हैंआज भी हमारी रगों में वही रक्त है वही साहस है वही शांति एवं वही ज्ञान विद्यमान है। आखिर हम वही दिव्य आर्य संतान हैंजिसने वर्तमान भारत में भारतीयता को जीवित रखा है। हमारे अंतर्मन में आज भी शांति  समर्थ निहित है।


जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष
आज हम सभी भारतवासी देश के गौरव एवं उसकी अस्मिता को बरकरार रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं इसी कारण हम प्रगति पथ पर हैं और बड़ी खुशी के साथ हमें इस बात का अभिमान है इस पवित्र पावन एवं गौरवशाली भूमि पर अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए हम सदैव तत्पर हैं। आखिरयह हमारा प्रिय भारतवर्ष है, जिसके लिए हम सभी अपना सर्वस्व निछावर करने के लिए सदैव तत्पर हैं रहे थेरहे हैं और रहेंगे।





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