विषय हिंदी
Prepared by: Chander Uday Singh
प्रत्येक विद्यार्थी दोहे का भावार्थ लिखने में सक्षम हो
बिहारीदोहे
बिहारी के दोहे का अर्थ सहित-
Bihari Ke Dohe in Hindi Explanation
सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि सैल पर आतपु परयौ प्रभात॥
बिहारी के दोहे भावार्थ: बिहारी के दोहे की उपर्युक्त पंक्तियों में कवि बिहारी जी ने श्री कृष्ण के रूप-सौंदर्य का वर्णन किया है। उन्होंने लिखा है कि श्री कृष्ण के साँवले शरीर पर पीले रंग के वस्त्र ऐसे लग रहे हैं, मानो नीलमणि पर्वत पर सुबह-सुबह सूर्य की किरणें पड़ रही हों।
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोवन सौ कियौ दीरघ दाघ निदाघ।।
बिहारी के दोहे भावार्थ: बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में बिहारी जी ने ग्रीष्म ऋतु की भयंकर गर्मी का वर्णन किया है। वे यहाँ कहते हैं कि जंगल में पड़ रही भयंकर गर्मी के कारण एक-दूसरे की जान के प्यासे जंगली जानवर जैसे बाघ, सांप, मोर, हिरन आदि आपसी शत्रुता भूलकर तपस्वियों की तरह शांति से एकसाथ रह रहे हैं।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की उपर्युक्त पंक्तियों में गोपियाँ एक दूसरे से बातचीत करते हुए कह रहीं हैं कि हे सखी! हमने श्री कृष्ण से बात करने के लालच में उनकी मुरली छुपा ली है, ताकि उनका पूरा ध्यान हम पर रहे और हम उनसे प्रेम भरी बातें कर के सुख प्राप्त कर सकें। श्री कृष्ण तरह-तरह की कसमें देकर उनसे मुरली के बारे में पूछते हैं, लेकिन वे नहीं बताती। फिर जब श्री कृष्ण को यकीन हो जाता है कि गोपियों को मुरली के बारे में नहीं पता है, तब वे अपनी भौहें टेडी कर के हँसने लग जाती हैं। इस कारण, श्री कृष्ण को फिर से गोपियों पर संदेह हो जाता है।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने दो प्रेमियों के बीच इशारे से हो रही बातचीत का वर्णन किया है। कवि कह रहे हैं कि तमाम लोगों की भीड़ बीच में भी दो प्रेमी एक-दूसरे से आँखों ही आँखों के इशारों से इस तरह बात करते हैं कि दूसरे लोगों को पता भी नहीं चलता। इशारे-इशारे में ही प्रेमी अपनी प्रेमिका से कुछ पूछता है और प्रेमिका उसका उत्तर ना में दे देती है। जिससे प्रेमी रूठ जाता है और उसे मनाने के लिए प्रेमिका आँखों ही आँखों में इशारे करती हैं। जब दोनों की आँखें मिलती हैं, तो दोनों ही शर्मा जाते हैं।
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बिहारी जी ने जून के महीने में पड़ने वाली गर्मी का वर्णन किया है। कवि इन पंक्तियों में गर्मी की प्रचंडता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि गर्मी इतनी भयंकर है कि छाया भी इस गर्मी से बचने के लिए छांव खोज रही है। वह इस गर्मी से बचने के लिए या तो घने जंगलों में कहीं छुप गई है या फिर किसी घर के अंदर चली गई है।
प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि श्री कृष्ण से कहते हैं कि आप ने स्वयं ही चन्द्रवंश में जन्म लिया और ब्रज आकर बस गए। जहाँ उन्हें सब केशव कह कर बुलाते थे। बिहारी जी के पिता का नाम केशवराय था। इसीलिए कवि श्री कृष्ण को पिता समान मानते हुए, उनसे अपने सभी दुःख हरने की विनती करते हैं।
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु॥
बिहारी के दोहे भावार्थ : बिहारी के दोहे की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने धार्मिक आडंबरों के स्थान पर सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करने पर ज़ोर दिया है। उनके अनुसार अगर आपका मन स्थिर नहीं है, तो हाथ में माला लेकर, माथे पर तिलक लगाकर एवं भगवान का नाम लिखे वस्त्र पहनकर बार-बार राम-राम चिल्लाने से कोई फायदा नहीं होगा। कवि के अनुसार मन तो कांच की तरह ही कोमल होता है, जो इधर-उधर की बातों में भटकता रहता है। अगर हम अपने मन को स्थिर करके ईश्वर की आराधना करें, तब ही हम सच्चे भक्त कहलाने के लायक हैं।
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