Saturday, April 11, 2020

bihari ke dohey class 10th JKBOARD question and answers

Question and answers 

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए: 


प्रश्न 1. छाया भी कब छाया ढूँढ़ने लगती है?
उत्तर. जेठ के माह की दोपहर में हर ओर भयंकर गर्मी होती है। सूरज की तपती किरणें हर तरफ फैली रहती हैं, जिससे धरती मानो जलने लगती है। ऐसे में छाया कहीं भी दिखाई नहीं देती है, ऐसा लगता है, मानो वो भी इस प्रचंड धूप से बचने के लिए कहीं छाया में छिप गयी है। 
प्रश्न 2. बिहारी की नायिका यह क्यों कहती है ‘कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात’ – स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. बिहारी की नायिका अपने प्रियतम के वियोग में तड़प रही है, जिसकी वजह से उसकी आँखों से आँसू बह रहे हैं और उसके हाथ कांप रहे हैं। वो कागज़ पर अक्षर भी लिख नहीं पा रही है और किसी अन्य के हाथों अपने पिया को संदेश भिजवाने में उसे शर्म आती है। नायिका अपने मन में सोचती है कि हमारा प्रेम सच्चा और निश्छल है। मेरे प्रियतम के मन में भी मेरे लिए इतना ही प्रेम है, इसलिए मुझे उनसे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है। वे तो मेरे हृदय के भावों को बिना कहे ही, अपने हृदय से समझ जाएंगे। 
प्रश्न 3. सच्चे मन में राम बसते हैं−दोहे के संदर्भानुसार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर. बिहारी के दोहे में वे कहते हैं कि माला जपने, तिलक लगाने और मुख से हर पल राम नाम रटने से किसी को ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है। ईश्वर को पाना है, तो खुद को धार्मिक आडंबरों, छल-कपट, क्रोध-वासना जैसे अवगुणों से दूर करो और अपना मन पवित्र व सच्चा बनाओ। जब तुम्हारा मन पवित्र होगा, तो उसमें ईश्वर खुद-ब-खुद आकर बस जाएंगे। फिर तुम्हें माला जपने, राम-राम रटने और तिलक लगाने की ज़रूरत नहीं रह जाएगी।
प्रश्न 4. गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी क्यों छिपा लेती हैं?
उत्तर. गोपियाँ श्रीकृष्ण के पास आकर उनसे बात करना चाहती हैं और उनके मुख की दिव्य आभा को अपने मन में समेट कर रख लेना चाहती हैं। मगर, श्रीकृष्ण को अपनी बाँसुरी सभी से ज्यादा प्रिय है और वो हर पल उसे बजाने में व्यस्त और मस्त रहते हैं। इसलिए गोपियाँ श्रीकृष्ण की बाँसुरी को छिपा लेती हैं। वो सोचती हैं कि जब कान्हा के पास मुरली ही नहीं रहेगी, तो फिर वो हमसे ज़रूर बात करेंगे। इस तरह गोपियाँ कान्हा की बाँसुरी छिपा लेती हैं।
प्रश्न 5. बिहारी कवि ने सभी की उपस्थिति में भी कैसे बात की जा सकती है, इसका वर्णन किस प्रकार किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर. कवि बिहारी जी ने बताया है कि प्रेम को शब्दों में व्यक्त करने की ज़रूरत नहीं है। सभी लोगों की स्थिति में भी संकेतों यानी इशारों की मदद से बात की जा सकती है। बिहारी जी ने अपने दोहे में बताया है कि कैसे प्रेमी इशारा करके प्रेमिका से मिलने के लिए कहता है, प्रेमिका कुछ कहे बिना इशारे से ही उसे मिलने के लिए मना कर देती है। उसके मना करने की अदा पर प्रेमी मुग्ध हो जाता है, जिससे प्रेमिका खीज जाती है। फिर दोनों की नजरें मिल जाती हैं, जिससे प्रेमी ख़ुश हो जाता है और प्रेमिका शरमा जाती है। 

(ख) निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए –

1. मनौ नीलमनी-सैल पर आतपु पर्यौ प्रभात।
उत्तर. बिहारी के दोहे से ली गई इस पंक्ति में कवि ने श्रीकृष्ण की तुलना नीलमणि पर्वत से करते हुए कहा है कि श्रीकृष्ण के नील शरीर पर शोभित पीताम्बर ऐसा लग रहा है, मानो नीलमणि पर्वत पर सवेरे का सूरज का उजाला चमक रहा हो।
2. जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।
उत्तर. बिहारी के दोहे पाठ की इस पंक्ति में कवि कहते हैं कि ग्रीष्म ऋतु की भयानक तपिश से सारा जंगल तपोवन की भांति पवित्र हो गया है। अब सभी एक-दूसरे के साथ हिल-मिलकर रहे हैं और यहां हिंसा का कोई निशान नहीं है। शेर-हिरण, साँप-मोर जैसे परम शत्रु भी गर्मी की वजह से एक-दूसरे पर आक्रमण नहीं कर रहे हैं, मानो वो सभी मिलकर कोई तप कर रहे हों। इस पंक्ति में कवि ने हमें यह सीख दी है कि मुसीबत के समय में हम सभी को अपने आपसी वैर भूल जाने चाहिए और मिल-जुलकर रहना चाहिए।
3. जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
  मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
उत्तर. इस दोहे में बिहारी जी कह रहे हैं कि केवल माला जपने, तिलक लगाने और छाप पहनने जैसे बाहरी पाखंडों से कोई काम पूरा नहीं होता है और ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती है। ईश्वर को पाने के लिये हमें सच्ची भक्ति की आवश्यकता होती है और सच्ची भक्ति तो श्रद्धा, सच्ची लगन और मन की सच्चाई व पवित्रता से मिलती है। सच्चे मन में ही ईश्वर रहते हैं, इसलिए उन्हें पाने के लिए हमें धार्मिक आडंबर करने के बजाय मन को निर्मल बनाने पर देना चाहिए। 
दूसरे शब्दों में, कवि यहाँ हमें धार्मिक ढोंग-पाखंडों से दूर रहने और सच्चे मन से प्रभु को भक्ति करने की शिक्षा दे रहे हैं।



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