Thursday, July 2, 2020

Muhavare aur Lokoktiyan- Hindi Vyakaran class 10th

मुहावरे और लोकोक्तियाँ 

A hindi lesson by - Chander Uday Singh

कुछ महत्त्वपूर्ण मुहावरे एवं उनके वाक्यों में प्रयोग


1. अँगारे बरसना—अत्यधिक गर्मी पड़ना।
जून मास की दोपहरी में अंगारे बरसते प्रतीत होते हैं।

2. अंगारों पर पैर रखना-कठिन कार्य करना।
युद्ध के मैदान में हमारे सैनिकों ने अंगारों पर पैर रखकर विजय प्राप्त की।

3. अँगारे सिर पर धरना—विपत्ति मोल लेना।
सोच-समझकर काम करना चाहिए। उससे झगड़ा लेकर व्यर्थ ही अंगारे सिर पर मत धरो।
4. अँगूठा चूसना-बड़े होकर भी बच्चों की तरह नासमझी की बात करना।

कभी तो समझदारी की बात किया करो। कब तक अंगूठा चूसते रहोगे?
5. अँगूठा दिखाना-इनकार करना।
जब कृष्णगोपाल मन्त्री बने थे तो उन्होंने किशोरी को आश्वासन दिया था कि जब उसका बेटा इण्टर कर लेगा तो वह उसकी नौकरी लगवा देंगे। बेटे के प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने पर किशोरी ने उन्हें याद दिलाई तो उन्होंने उसे अँगूठा दिखा दिया।

6. अँगूठी का नगीना-अत्यधिक सम्मानित व्यक्ति अथवा वस्तु।
अकबर के नवरत्नों में बीरबल तो जैसे अंगूठी का नगीना थे।

7. अंग-अंग फूले न समाना-अत्यधिक प्रसन्न होना। राम के अभिषेक की बात सुनकर कौशल्या का अंग-अंग फूले नहीं समाया।

8. अंगद का पैर होना-अति दुष्कर/असम्भव कार्य होना।
यह पहाड़ी कोई अंगद का पैर तो है नहीं, जिसे हटाकर रेल की पटरी न बिछाई जा सके।

9. अन्धी सरकार—विवेकहीन शासन।
कालाबाजारी खूब फल-फूल रही है, किन्तु अन्धी सरकार उन्हीं का पोषण करने में लगी है।

10. अन्धे की लाठी -एकमात्र सहारा होना। निराशा में प्रतीक्षा अन्धे की लाठी है।

11. अन्धे के आगे रोना-निष्ठुर के आगे अपना दुःखड़ा रोना।।
जिस व्यक्ति ने पैसों के लिए अपनी पत्नी को जलाकर मार दिया, उससे सहायता माँगना तो अन्धे के आगे रोना जैसा व्यर्थ है।

12. अम्बर के तारे गिनना-नींद न आना।
तुम्हारे वियोग में मैं रातभर अम्बर के तारे गिनता रहा।

13. अन्धे के हाथ बटेर लगना-भाग्यवश इच्छित वस्तु की प्राप्ति होना।
तृतीय श्रेणी में स्नातक लोकेन्द्र को क्लर्क की नौकरी क्या मिली, मानो अन्धे के हाथों बटेर लग गई।

14. अन्धों में काना राजा-मूर्खों के बीच कम ज्ञानवाले को भी श्रेष्ठ ज्ञानवान् माना जाता है।
कभी आठवीं पास मुंशीजी अन्धों में काने राजा हुआ करते थे; क्योंकि तब बारह-बारह कोस तक विद्यालय न थे।

15. अक्ल का अन्धा-मूर्ख।
वह लड़का तो अक्ल का अन्धा है, उसे कितना ही समझाओ, मानता ही नहीं है।

16. अक्ल के घोड़े दौड़ाना-हवाई कल्पनाएँ करना।
परीक्षा में सफलता परिश्रम करने से ही मिलती है, केवल अक्ल के घोड़े दौड़ाने से नहीं।

17. अक्ल चरने जाना-मति भ्रम होना, बुद्धि भ्रष्ट हो जाना।
दुर्योधन की तो मानो अक्ल चरने चली गई थी, जो कि उसने श्रीकृष्ण के सन्धि-प्रस्ताव को स्वीकार न करके उन्हें ही बन्दी बनाने की ठान ली।

18. अक्ल पर पत्थर पड़ना-बुद्धि नष्ट होना।
राजा दशरथ ने कैकेयी को बहुत समझाया कि वह राम को वन भेजने का वरदान न माँगे; पर उसकी अक्ल पर पत्थर पड़े हुए थे; अत: वह न मानी।

19. अक्ल के पीछे लाठी लिये फिरना-मूर्खतापूर्ण कार्य करना। तुम स्वयं तो अक्ल के पीछे लाठी लिये फिरते हो, हम तुम्हारी क्या सहायता करें।

20. अगर मगर करना-बचने का बहाना ढूँढना।
अब ये अगर-मगर करना बन्द करो और चुपचाप स्थानान्तण पर चले जाओ, गोपाल को उसके अधिकारी ने फटकार लगाते हुए यह कहा।

21. अटका बनिया देय उधार-जब अपना काम अटका होता है तो मजबूरी में अनचाहा भी करना पड़ता है।
जब बहू ने हठ पकड़ ली कि यदि मुझे हार बनवाकर नहीं दिया तो वह देवर के विवाह में एक भी गहना नहीं देने देगी, बेचारी सास क्या करे! अटका बनिया देय उधार और उसने बहू को हार बनवा दिया।

22. अधजल गगरी छलकत जाए-अज्ञानी पुरुष ही अपने ज्ञान की शेखी बघारते हैं।
आठवीं फेल कोमल अपनी विद्वत्ता की बड़ी-बड़ी बातें करती है। आखिर करे भी क्यों नहीं, अधजल गगरी छलकत जाए।

23. अन्त न पाना-रहस्य न जान पाना।
गुरुजी ने अपने प्रवचन में ईश्वर की महिमा का गुणगान करते हुए बताया कि ईश्वर की माया का अन्त किसी ने नहीं पाया है।

24. अन्त बिगाड़ना-नीच कार्यों से वृद्धावस्था को कलंकित करना।
लाला मनीराम को बुढ़ापे में भी घटतौली करते देखकर गोविन्द ने उससे कहा कि लाला कम-से-कम अपना अन्त तो न बिगाड़ो।

25. अन्न-जल उठना-मृत्यु के सन्निकट होना।
रामेश्वर की माँ की हालत बड़ी गम्भीर है, लगता है कि अब उसका अन्न-जल उठ गया है।

26. अपना उल्लू सीधा करना-अपना काम निकालना।
कुछ लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए दूसरों को हानि पहुँचाने से भी नहीं चूकते।

27. अपनी खिचड़ी अलग पकाना – सबसे पृथक् कार्य करना।
कुछ लोग मिलकर कार्य करने के स्थान पर अपनी खिचड़ी अलग पकाना पसन्द करते हैं।

28. अपना राग अलापना-दूसरों की अनसुनी करके अपने ही स्वार्थ की बात कहना।
कुछ व्यक्ति सदैव अपना ही राग अलापते रहते हैं, दूसरों के कष्ट को नहीं देखते।

29. अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बनना-अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बननेवाले का सम्मान धीरे-धीरे कम हो जाता है।

30. अपना-सा मुँह लेकर रह जाना-लज्जित होना।
अपनी झूठी बात की वास्तविकता का पता चलने पर वह अपना-सा मुँह लेकर रह गया।




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Monday, June 29, 2020

Mera Priye Adhyapak (my favourite teacher hindi essay )

हिंदी निबंध
A hindi lesson by- Chander Uday Singh



मेरे प्रिय अध्यापक


हमें संसार मे कुछ लोग औरों से बहुत अच्छे लगते है। मानव स्वभाव ही ऐसा होता है। जिससे वो अपने मन मे उनके रहते थोड़ी राहत अनुभव करता है उसके प्रति आकर्षित होता है। और उनकी आवश्यकता अनुभव करता है।

महत्व:- ओर हमारे विद्यार्थी जीवन को बनाने और सँवारने में उसके अध्यापक की भूमिका सबसे बड़ी होती है। कबीर दास जी ने कहा है।

गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, गढी-गढ़ी काढ़े खोट,
अंतर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट।

इसका मतलब है। गुरु कुम्हार के समान होता है। जो कच्चे घड़े को आकार देने के लिए उसे अंदर से सहारा देता है। और बहार से हाथ से पीटता  है।  ठीक उसी प्रकार अधयापक बाहर से कठोर रहकर भी भीतर से अपने विद्यार्थी के भविष्य की अच्छी कामना करता है।

यही नही हमारे धर्मो , हमारी सभ्यता और संस्कृति में गुरु के महत्व को ईशवर से भी बढ़कर स्थान दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु के ही द्वारा ईशवर का ज्ञान और दर्शन होता है। इसलिए ईशवर से पहले गुरु पूजनीय होते है। इस प्रकार गुरु की महिमा ईशवर के समान है। इस के लिए कबीरदास द्वारा कहा गया दोहा अत्यधिक प्रचलित माना जाता है।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े,काके लागू पाय,।
बलिहारी गुरु आपने,गोविंद दियो बताय।।

मेरे प्रिय अध्यापक का नाम:- मेरी दसवीं क्लास में कई अनेक अधयापक आये पर मेरे संपर्क में मेरे विज्ञान के अध्यापक सचिन दास सर से में बहुत अधिक प्रभावित हुआ हूँ। क्योंकि उनके व्यक्तित्व का प्रभाव और उनके पढ़ाने का तरीका मेरे मन मे गहरा छाप छोड़ता है।

 

उनकी योग्यता:- पढ़ाने की दृष्टि से उनका कोई जबाव नही है। वो अपने विषय के बारे में इतनी गहराई ओर विस्तार से समझाते है। कि छत्रों को कहि अन्य जगह भटकने की आवश्यकता नही पड़ती । वो एक एक लेसन को बहुत ही अच्छी तरह से समझाकर विषय से हमे परिचित करवा देते है। मुझे उनका पढ़ाना बहुत भाता है।

उनकी महानता:- मेने उन्हें कभी भी क्रोध में उबलते या तीव्र स्वर में किसी भी विद्यार्थी को डांटते हुए नही देखा है। यदि उन्हें किसी की गलती पर क्रोध आ भी जाता है। तो छात्र को पहले आराम से गंभीरतापूर्वक समझाते है। तथा उसे सही गलत के बारे में बताते है। उनकी आँखों की स्नेह और गम्भीरता ही छात्र के लिए डांट का प्रयाय बन जाते है।

समय का महत्व:- उनका मानना है। कि प्रतेक कार्य के  लिए समय को अत्यधिक महत्व देना चाहिए। और वो समय के अत्यंत पाबंद है। कभी भी समय का दुरुपयोग नही करते है। समय पर कक्षा में आते है। तथा अपने विषय को गम्भीरता से पढ़ाते है। सबसे बड़ी बात यह है कि वो केवल अपने विषय तक ही सीमित नही रहते है। विद्यार्थी की अनेक व्यक्तिगत और मानसिक समस्याओं का समाधान भी करते है। मेने उन्हें कभी भी सिगरेट पीते या किसी विद्यार्थी को अपशब्द कहते नही सुना है। वह केवल एक पुस्तक पढ़ाने में ही विशवास नहीं रखते अपितु उसको प्रैक्टिकल करके भी बताते है। और लिखित कार्य को भी बहुत लगन ओर ध्यान से देखते है। तथा गलतियों का सुधार भी करवाते है।

 

उपसंहार:- इस प्रकार हमारे प्रिय अध्यापक महोदय सर्वक्षेष्ठ अध्यापको में से एक है। उनका कार्य और गुण न केवल मुझे ही प्रभावित करते है। अपितु पूरे स्कूल के अध्यापक ओर विद्यार्थियों को भी प्रभावित करते है। इस आधार पर हम कह सकते है। कि मेरे प्रिय अध्यापक एक ऐसे आदर्श अध्यापक है, जिन पर हम बहुत गर्व करते है। उनसे हमारा विद्यालय बहुत ही गर्वित ओर हर्षित होता है। इस प्रकार मेरे अध्यापक अत्यंत महान ओर प्रशंसनीय है इनसे निश्चय ही एक सफल और आदर्श बनने की प्रेरणा मिलती है।

Monday, June 15, 2020

Bhikshuk ( Kavita) kavi parichay aur sampoorn vyakhya

Suryakant Tripathi Nirala Poems In Hindi - स्मृति शेष ...

भिक्षुक



A hindi  lesson by- Chander Uday Singh




सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(1896 से 1961 ईस्वी)

कवी परिचय 

निराला का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगला के माध्यम से हुई। निराला जी का पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा। 1988 में पत्नी मनोहरा देवी की मृत्यु हुई। पुत्री सरोज की मृत्यु ने तो इनका मानसिक संतुलन भी स्थिर नहीं रहने दिया। निराला जी के साहित्यिक जीवन की यात्रा मतवाला के संपादन से शुरू हुई। इसी पत्रिका में उनकी मुक्तक छंद की रचनाएं छपी थी। छंद और विषय वस्तु दोनों क्षेत्रों में निराला ने अपने लिए परंपरा से अलग रास्ता निकाला। सामाजिक शोषण के प्रति उनकी वाणी विद्रोह से भर उठी। निराला जी आधुनिक युग के एक क्रांतिकारी कवि के रूप में विख्यात है। उनकी मुख्य रचनाएं हैं यह अनामिका , परिमल , अणिमा, राम की शक्ति-पूजा।


भिक्षुक 
कविता की व्याख्या 



1. वह आता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|

प्रसंग- प्रस्तुत  अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।



व्याख्या - प्रस्तुत पद में कवि निराला जी ने कहा है कि एक भिखारी को जब वे भीख माँगते देखते हैं तो उसकी दीन - हीन दशा को देखकर उनके कलेजे के टुकड़े - टुकड़े हो जाते हैं वह अपनी दीन - हीन अवस्था को देखकर पश्चाताप है वह लाठी के सहारे धीरे धीरे चलता हैं ,उसकी पीठ और पेट एक हो गए हैं यानी की वह कई दिनों से भूखा है थोड़े से भोजन के लिए उसे दर -दर की ठोकरे खानी पड़ रही हैं  उसके हाथ में एक फटी पुरानी झोली है ,जिसे वह सबके सामने फैलाता हुआ भीख माँग रहा  है ताकि वह अपना पेट भर सके  यह देख कर कवि का ह्रदय चीर - चीर हो जाता है  यह दरिद्रता को देखकर पछताता रहता है


2. साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये ,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए|
भूख से सूख ओंठ जब जाते,
दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसूओं के पीकर रह जाते|

प्रसंग- प्रस्तुत  अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।

व्याख्या - सड़क पर चलते भिखारी के साथ उसके दो बच्चे भी है वे अपने बाएँ हाथ से अपने पेट को मलते हुए चल रहे है और दाहिने हाथ से आते -जाते हुए लोगों से कुछ पाने के लिए हाथ फैलाये माँग रहे हैं  भूख से होंठ सूख गए गए है तो वे अपने अपने आंसुओं को पीकर रह जाते है ऐसा लगता है मानों उन बच्चों की दशा को देख कर किसी को दया नहीं आती है और किसी ने उनको खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता अतः कवि उनकी दशा को देखकर द्रवित हो जाता है। 


3.चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए ,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए|
ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत,
मैं सींच दूंगा|
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा|

प्रसंग- प्रस्तुत  अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।

व्याख्या - भूख से ब्याकुल भिखारी और उसके दोनों बच्चे जब मार्ग से गुजरते है तो सड़क से किनारे झूठी पत्तलों को देखकर उनसे रहा नहीं जाता है और वे अपनी भूख को मिटाने के लिए वे सड़क पर पड़े हुए उन्ही झूठी पत्तलों को चाटते हैं  वे भी गली के कुत्ते को साथ झूठी पत्तलों को चाटने के लिए लड़ने लगते हैं। कवि यह देखकर को देखकर द्रवित हो जाता है  कवि का ह्रदय इस बात के लिए चिंतित हो जाता है कि वह उनके दुःख दर्द को बाटेंगा और इनका दर्द दूर करेगा 


भिक्षुक कविता का केंद्रीय भाव / मूल भाव



भिक्षुक कविता महाप्राण निराला जी द्वारा लिखी गयी है।प्रस्तुत कविता में कवि एक भिखारी और उसके दो बच्चों की दयनीय अवस्था का वर्णन किया है।  भिखारी से पेट और पीठ भुखमरी के कारण एक हो गए है । वे अपनी भूख मिटाने के लिए भीख माँगते रहते है ,सड़क पर चलते हुए झूठी पत्तलों को चाट रहे हैं ,जिसके लिए उन्हें कुत्तों से भी छिना -झपटी करना पड़ रहा है । भिक्षुक की दीनता को देख कर कवि उनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करता है




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