A hindi lesson by- Chander Uday Singh
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
(1896 से 1961 ईस्वी)
कवी परिचय
निराला का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगला के माध्यम से हुई। निराला जी का पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा। 1988 में पत्नी मनोहरा देवी की मृत्यु हुई। पुत्री सरोज की मृत्यु ने तो इनका मानसिक संतुलन भी स्थिर नहीं रहने दिया। निराला जी के साहित्यिक जीवन की यात्रा मतवाला के संपादन से शुरू हुई। इसी पत्रिका में उनकी मुक्तक छंद की रचनाएं छपी थी। छंद और विषय वस्तु दोनों क्षेत्रों में निराला ने अपने लिए परंपरा से अलग रास्ता निकाला। सामाजिक शोषण के प्रति उनकी वाणी विद्रोह से भर उठी। निराला जी आधुनिक युग के एक क्रांतिकारी कवि के रूप में विख्यात है। उनकी मुख्य रचनाएं हैं यह अनामिका , परिमल , अणिमा, राम की शक्ति-पूजा।
भिक्षुक
कविता की व्याख्या
1. वह आता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।
व्याख्या - प्रस्तुत पद में कवि निराला जी ने कहा है कि एक भिखारी को जब वे भीख माँगते देखते हैं तो उसकी दीन - हीन दशा को देखकर उनके कलेजे के टुकड़े - टुकड़े हो जाते हैं। वह अपनी दीन - हीन अवस्था को देखकर पश्चाताप है। वह लाठी के सहारे धीरे धीरे चलता हैं ,उसकी पीठ और पेट एक हो गए हैं यानी की वह कई दिनों से भूखा है। थोड़े से भोजन के लिए उसे दर -दर की ठोकरे खानी पड़ रही हैं । उसके हाथ में एक फटी पुरानी झोली है ,जिसे वह सबके सामने फैलाता हुआ भीख माँग रहा है ताकि वह अपना पेट भर सके । यह देख कर कवि का ह्रदय चीर - चीर हो जाता है । यह दरिद्रता को देखकर पछताता रहता है।
2. साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये ,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए|
भूख से सूख ओंठ जब जाते,
दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसूओं के पीकर रह जाते|
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।
व्याख्या - सड़क पर चलते भिखारी के साथ उसके दो बच्चे भी है। वे अपने बाएँ हाथ से अपने पेट को मलते हुए चल रहे है और दाहिने हाथ से आते -जाते हुए लोगों से कुछ पाने के लिए हाथ फैलाये माँग रहे हैं । भूख से होंठ सूख गए गए है तो वे अपने अपने आंसुओं को पीकर रह जाते है। ऐसा लगता है मानों उन बच्चों की दशा को देख कर किसी को दया नहीं आती है और किसी ने उनको खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता। अतः कवि उनकी दशा को देखकर द्रवित हो जाता है।
3.चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए ,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए|
ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत,
मैं सींच दूंगा|
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा|
प्रसंग- प्रस्तुत अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।
व्याख्या - भूख से ब्याकुल भिखारी और उसके दोनों बच्चे जब मार्ग से गुजरते है तो सड़क से किनारे झूठी पत्तलों को देखकर उनसे रहा नहीं जाता है और वे अपनी भूख को मिटाने के लिए वे सड़क पर पड़े हुए उन्ही झूठी पत्तलों को चाटते हैं । वे भी गली के कुत्ते को साथ झूठी पत्तलों को चाटने के लिए लड़ने लगते हैं। कवि यह देखकर को देखकर द्रवित हो जाता है । कवि का ह्रदय इस बात के लिए चिंतित हो जाता है कि वह उनके दुःख दर्द को बाटेंगा और इनका दर्द दूर करेगा ।
भिक्षुक कविता का केंद्रीय भाव / मूल भाव
भिक्षुक कविता महाप्राण निराला जी द्वारा लिखी गयी है।प्रस्तुत कविता में कवि एक भिखारी और उसके दो बच्चों की दयनीय अवस्था का वर्णन किया है। भिखारी से पेट और पीठ भुखमरी के कारण एक हो गए है । वे अपनी भूख मिटाने के लिए भीख माँगते रहते है ,सड़क पर चलते हुए झूठी पत्तलों को चाट रहे हैं ,जिसके लिए उन्हें कुत्तों से भी छिना -झपटी करना पड़ रहा है । भिक्षुक की दीनता को देख कर कवि उनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करता है।
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