Tuesday, June 29, 2021

Kaikai ka Anutap Class 10th Hindi

 कैकेयी का अनुताप

मैथिलीशरण गुप्त

Class 10th

A hindi lesson by Chander Uday Singh

सम्पूर्ण व्याख्या प्रसंग सहित 


“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को |”

चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी स्वर को |

सबने रानी की ओर अचानक देखा,

बैधव्य-तुषारावृता   यथा   विधु-लेखा |

बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा ,

वह सिंही अब थी हहा ! गौमुखी गंगा —

“हाँ, जनकर भी मैंने न भारत को जाना ,

सब सुन लें,तुमने स्वयं अभी यह माना |

यह सच है तो फिर लौट चलो घर भईया ,

अपराधिन मैं हूँ तात , तुम्हारी मईया |





सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में राम की बात सुनकर माता कैकेयी स्वयं को दोषी सिद्ध करती हुई उनसे अयोध्या लौटने की बात कहती हैं।

व्याख्या - राम की इस बात को सुनकर कि भरत को स्वयं उसकी माता भी न पहचान सकी, कैकेयी कहती हैं कि यदि यह सच है, तो अब तम अपने घर लौट चलो अर्थात् मेरी उस मूर्खता को भूलकर अयोध्या। चलो. जिसके परिणामस्वरूप मैंने तुम्हारे लिए वनवास की माँग की थी। 

कैकेयी के मुख से दढ स्वर में कही गई इस बात को सुनकर सब विस्मित रह गए और अचानक उनकी ओर देखने लगे। उस समय विधवा रूप में श्वेत वस्त्र धारण कर वे ऐसी प्रतीत हो रही थीं मानो कुहरे ने चाँदनी को ढक लिया हो। स्थिर बैठी होने के पश्चात भी उनके मन में विचारों की अनगिनत तरंगें उठ रही थीं। कभी सिंहनी-सी प्रतीत होने वाली रानी कैकेयी आज दीनता के भावों से भरी थीं। आज वह गंगा के सदृश शान्त, शीतल और पावन थीं।

कैकेयी आगे कहती हैं कि सभी लोग सुन लें- मैं जन्म देने के पश्चात् भी भरत को न पहचान सकी। अभी-अभी राम ने भी इस बात को स्वीकार किया है। वह राम से कहती हैं कि यदि तुम्हारी कही बात सच है तो तुम अयोध्या लौट चलो। अपराधिनी मैं हूँ, भरत नहीं। तुम्हें वन में भेजने का अपराध मैंने किया है। इसके लिए मुझे जो दण्ड चाहो दो, मैं उसे स्वीकार कर लूँगी, परन्तु घर लौट चलो, अन्यथा लोग भरत को दोषी मानेंगे।


काव्य सौन्दर्य भाव पक्ष

(i)प्रस्तत पद्यांश में कैकेयी को अपराध-बोध से ग्रसित दिखाया गया है। राम को घर लौटने का अनुरोध करके वह सदमार्ग की ओर अग्रसर होती दिख रही हैं।

(ii) रस शान्त एवं करुण


दुर्बलता का ही चिन्ह विशेष शपथ है ,

पर ,अबलाजन के लिए कौन सा पथ है ?

यदि मैं उकसाई गयी भरत से होऊं ,

तो पति समान स्वयं पुत्र भी खोऊँ |

ठहरो , मत रोको मुझे,कहूं सो सुन लो ,

पाओ यदि उसमे सार उसे सब चुन लो, 

करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊं ?

राई भर भी अनुताप न करने पाऊँ ?




सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कैकेयी के पश्चाताप को अपूर्व ढंग से अभिव्यंजित किया है।

व्याख्या - कैकेयी, भरत की सौगन्ध खाते हुए राम से कहती हैं कि सौगन्ध खाने से व्यक्ति की दुर्बलता प्रकट होती है, परन्तु स्त्रियों के लिए इसके अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नहीं हैं। वह राम को सम्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे राम! मुझे तुम्हारे वनवास के लिए भरत ने नहीं उकसाया था। यदि यह सच नहीं तो मैं पति के समान ही। अपना पुत्र भी खो बैठूं । मुझे यह कहने से कोई न रोके। मैं जो कह रही हैं, सभी सुन लें। यदि मेरे कथनों में कोई यथार्थ बात हो तो उसे ग्रहण कर लें। मुझसे यह न सहा जा सकेगा कि मैं इतना बड़ा पाप करके थोड़ा भी पश्चाताप प्रकट न करूँ और मौन रह जाऊँ।


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थी सनक्षत्र शशि-निशा ओस टपकाती ,

रोती थी नीरव सभा ह्रदय थपकाती |

उल्का सी रानी दिशा दीप्त करती थी ,


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कैकेयी के यह सब कहने के दौरान तारों से भरी चाँदनी रात ओस के रूप में अश्रु-जल बरसा रही थी और नीचे मौन सभा हृदय को थपथपाते हुए रुदन कर रही थी। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि कैकेयी के हृदय-परिवर्तन और उनके पश्चाताप को देख सभा में उपस्थित सभी लोगों की संवेदना उनके साथ थी मानो सभासद सहित प्रकृति ने भी उन्हें उनके अपराध के लिए क्षमा कर दिया हो।

रानी कैकेयी, जिसने अपनी अनुचित माँग से पूरे अयोध्या और वहाँ के निवासियों का जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया था, आज पश्चाताप की अग्नि में जलकर चारों ओर सदभाव की किरणें बिखेर रही थीं। उनके इस नए रूप के परिणामतः वहाँ उपस्थित लोगों में एक साथ भय, आश्चर्य और शोक के भाव उमड़ रहे थे।


सबमें भय,विस्मय और खेद भरती थी |

‘क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी ,

मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी |

जल पंजर-गत अरे अधीर , अभागे ,

वे ज्वलित भाव थे स्वयं तुझी में जागे |

पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में ?

क्या शेष बचा था कुछ न और इस जन में ?

कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य मात्र , क्या तेरा ?

पर आज अन्य सा हुआ वत्स भी मेरा |

थूके , मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके ,

जो कोई जो कह सके , कहे, क्यों चुके ?

छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे ,

हे राम , दुहाई करूँ और क्या तुझसे ?


सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी, राम को वनवास भेजने के लिए स्वयं को दोषी ठहराते हुए पश्चाताप कर रही है।

व्याख्या - कैकेयी, मन्थरा को निर्दोष बताते हुए कहती हैं कि मन्थरा तो साधारण-सी दासी है। वह भला मेरे मन को कैसे बदल सकती! सच तो। यह है कि स्वयं मेरा मन ही अविश्वासी हो गया था।

अपने मन को अधीर और अभागा मान कैकेयी अपने अन्तर्मन को कहती हैं कि मेरे शरीर में स्थित हे मन! ईर्ष्या-द्वेष से परिपूर्ण वे ज्वलन्त भाव स्वयं तझमें ही जागे थे। तत्पश्चात् वह अगले ही क्षण सभा को सम्बोधित करते हुए प्रश्न पूछती हैं कि क्या, मेरे मन में केवल आग लगाने वाले भाव ही थे? क्या मुझमें और कुछ भी शेष न था? क्या मेरे मन के वात्सल्य भाव अर्थात् पुत्र-स्नेह का कुछ भी मूल्य नहीं? किन्तु हाय आज स्वयं मेरा पुत्र ही मुझसे पराए की तरह व्यवहार करता है। अपने कर्मों पर पछताते हुए कैकेयी आगे कहती हैं कि तीनों लोक अर्थात् धरती, आकाश और पाताल मुझे क्यों न धिक्कारे, मेरे विरुद्ध जिसके मन में जो आए वह क्यों न कहे, किन्तु हे राम! मैं तुमसे दीन स्वर में बस इतनी ही विनती करती हूँ कि मेरा मातृपद अर्थात् भरत को पुत्र कहने का मेरा अधिकार मुझसे न छीना जाए। ।


काव्य सौन्दर्य

भाव पक्ष

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी ने अपनी उस विवशता को स्पष्ट किया है जब एक माँ अपनी सन्तान के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहती है, बावजूद इसके उसे उस सन्तान से प्यार नहीं मिलता।

(ii) रस करुण




कहते आते थे यही अभी नरदेही ,

‘माता न कुमाता , पुत्र कुपुत्र भले ही |’

अब कहे सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता ,—

‘है पुत्र पुत्र ही , रहे कुमाता माता |’

बस मैंने इसका बाह्य-मात्र ही देखा ,

दृढ ह्रदय न देखा , मृदुल गात्र ही देखा |

परमार्थ न देखा , पूर्ण स्वार्थ ही साधा ,

इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा !

युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी —

‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी |’

निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा —

‘धिक्कार ! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा |’—”


सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कैकेयी स्वयं को धिक्कारते हुए भरत के हृदय को न समझ पाने की असमर्थता को व्यक्त कर रही हैं।

व्याख्या - आत्मग्लानि में डूबी हुई कैकेयी कहती हैं कि अभी तक तो मानव जाति में यही कहावत प्रचलित थी कि पुत्र, कुपुत्र भले ही हो जाए, माता कभी कुमाता नहीं होती अर्थात् पुत्र माता के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने में चाहे कितनी भी लापरवाही क्यों न दिखाए, उनके प्रति कितना भी अपराध क्यों न करे, माता उसे क्षमा करके उसके प्रति अपना उत्तरदायित्व सदा निभाती ही रहती है, किन्तु अब तो सभी लोग यह कहेंगे कि विधाता के बनाए नियमों के विरुद्ध यहाँ पुत्र तो पुत्र ही है, माता ही कुमाता हो गई है अर्थात् संसार मुझ पर बुरी माता होने का आरोप लगाएगा । क्योंकि मैंने पुत्र के हित के विरुद्ध कार्य किया है।

कैकेयी अपने दोष गिनाते हुए आगे कहती हैं, कि मैंने अपने पुत्र (भरत) का केवल बाहरी रूप ही देखा है, उसके दृढ़ हृदय को मैं न समझ सकी। मेरी दृष्टि बस उसके कोमल शरीर तक गई, उसके परमार्थी स्वरूप को मैं अब तक न देख सकी। इन्हीं कारणों से आज मैं इन समस्याओं से घिरी हूँ और मेरा जीवन दुभर हो गया है। अब तो युगों-युगों तक मैं दुष्ट माता के रूप में जानी जाऊँगी। मुझे याद कर लोग कहेंगे कि रघुकुल में एक अभागिन रानी थी, जिसे स्वयं उसके पुत्र ने त्याग दिया था। जन्म-जन्मान्तर तक मेरी आत्मा यह सुनने के लिए विवश होगी कि अयोध्या की रानी कैकेयी को महा स्वार्थ ने घेरकर ऐसा अनुचित कर्म कराया कि उसने धर्म के मार्ग का त्याग कर अधर्म के मार्ग का अनुसरण किया।


काव्य सौन्दर्य

भाव पक्ष

( यहाँ कैकेयी के द्वारा भरत को न पहचान सकने के पश्चाताप का भाव व्यक्त किया गया है, साथ-ही-साथ समाज में होने वाले अपयश से उन्हें अत्यधिक चिन्तित भी दर्शाया गया है।

(ii) रस करुण


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“सौ बार धन्य वह एक लाल की माई |”

जिस जननी ने है जना भरत सा भाई |”

पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई —

“सौ बार धन्य वह एक लाल की माई |”



सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग यहाँ कैकेयी द्वारा पश्चाताप व्यक्त करने पर राम सहित उपस्थित सभाजनों ने उन्हें भरत जैसे पुत्र की माता होने पर धन्य कहा है।

व्याख्या - कैकेयी पश्चाताप व्यक्त करते हुए कह रही हैं कि अब तो कैकेयी की इन बातों को सुनकर राम सहित सभासदों ने एक स्वर में कहा कि भरत जैसे महान् पुत्र रत्न को जन्म देने वाली माता सौ-बार धन्य हैं। अतः । यहाँ सभी लोगों द्वारा एक मत से कैकेयी को निर्दोष कहा जा रहा है। – सभासदों की बात को सुनकर कैकेयी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उनकी बात दोहराई और कहा कि हाँ मैं उसी पुत्र की अभागिन माता हूँ, जिसे मैंने खो दिया है वह पुत्र भी अब मेरा नहीं रहा। उसने मुझे माता मानने से इनकार कर दिया है। मैंने हर प्रकार से अपयश ही कमाया है और स्वयं को कलंकित भी कर लिया है।

काव्य सौन्दर्य

भाव पक्ष

(i) प्रस्तुत पद्यांश में एक ओर कैकेयी के द्वारा स्वयं को धिक्कारने तो दूसरी ओर राम सहित सभासदों द्वारा उनका गुणगान करने के भाव दर्शाए गए हैं।

(ii) रस करुण


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Viram chinh (Punctuation mark) part-2

व्याकरण

कक्षा-10 

 विराम-चिह्न। (भाग-2) 

(Punctuation)

A hindi lesson by - Chander Uday Singh



(1)  अल्प विराम (Comma)(,) - वाक्य में जहाँ थोड़ा रुकना हो या अधिक वस्तुओं, व्यक्तियों आदि को अलग करना हो वहाँ अल्प विराम ( , ) चिह्न का प्रयोग किया जाता है।


अल्प का अर्थ होता है- थोड़ा। अल्पविराम का अर्थ हुआ- थोड़ा विश्राम अथवा थोड़ा रुकना। बातचीत करते समय अथवा लिखते समय जब हम बहुत-सी वस्तुओं का वर्णन एक साथ करते हैं, तो उनके बीच-बीच में अल्पविराम का प्रयोग करते है; जैसे-


(a) भारत में गेहूँ, चना, बाजरा, मक्का आदि बहुत-सी फसलें उगाई जाती हैं।


(b) जब हम संवाद-लेखन करते हैं तब भी अल्पविराम-चिह्न का प्रयोग किया जाता है;

जैसे- नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने कहा, ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।''


(c) संवाद के दौरान 'हाँ' अथवा 'नहीं' के पश्चात भी इस चिह्न का प्रयोग होता है; जैसे-

रमेश : केशव, क्या तुम कल जा रहे हो ?

केशव : नहीं, मैं परसों जा रहा हूँ।


हिंदी में इस विरामचिह्न का प्रयोग सबसे अधिक होता है। इसके प्रयोग की अनेक स्थितियाँ हैं।



इसके कुछ मुख्य नियम इस प्रकार हैं-


(i) वाक्य में जब दो से अधिक समान पदों और वाक्यों में संयोजक अव्यय 'और' आये, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है। जैसे-

पदों में- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न राजमहल में पधारे।

वाक्यों में- वह जो रोज आता है, काम करता है और चला जाता है।


(ii) जहाँ शब्दों को दो या तीन बार दुहराया जाय, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।

जैसे- वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।

सुनो, सुनो, वह क्या कह रही है।

नहीं, नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता।


(iii) जहाँ किसी व्यक्ति को संबोधित किया जाय, वहाँ अल्पविराम का चिह्न लगता है।

जैसे- भाइयो, समय आ गया है, सावधान हो जायँ।

प्रिय महराज, मैं आपका आभारी हूँ।

सुरेश, कल तुम कहाँ गये थे ?

देवियो, आप हमारे देश की आशाएँ है।


(iv)जिस वाक्य में 'वह', 'तो', 'या', 'अब', इत्यादि लुप्त हों, वहाँ अल्पविराम का प्रयोग होता है।

जैसे- मैं जो कहता हूँ, कान लगाकर सुनो। ('वह' लुप्त है।)

वह कब लौटेगा, कह नहीं सकता। ('यह' लुप्त है। )

वह जहाँ जाता है, बैठ जाता है। ('वहाँ' लुप्त है। )

कहना था सो कह दिया, तुम जानो। ('अब' लुप्त है।)


(v)यदि वाक्य में प्रयुक्त किसी व्यक्ति या वस्तु की विशिष्टता किसी सम्बन्धवाचक सर्वनाम के माध्यम से बतानी हो, तो वहाँ अल्पविराम का प्रयोग निम्रलिखित रीति से किया जा सकता है-

मेरा भाई, जो एक इंजीनियर है, इंगलैण्ड गया है

दो यात्री, जो रेल-दुर्घटना के शिकार हुए थे, अब अच्छे है।

यह कहानी, जो किसी मजदूर के जीवन से सम्बद्ध है, बड़ी मार्मिक है।


(vi) अँगरेजी में दो समान वैकल्पिक वस्तुओं तथा स्थानों की 'अथवा', 'या' आदि से सम्बद्ध करने पर उनके पहले अल्पविराम लगाया जाता है।

जैसे- Constantinople, or Istanbul, was the former capital of Turkey.

Nitre,or salt petre,is dug from the earth.


(vii)इसके ठीक विपरीत, दो भित्र वैकल्पिक वस्तुओं तथा स्थानों को 'अथवा', 'या' आदि से जोड़ने की स्थिति में 'अथवा', 'या' आदि के पहले अल्पविराम नहीं लगाया जाता है।

जैसे- I should like to live in Devon or Cornwall .

He came from kent or sussex.


(viii)हिन्दी में उक्त नियमों का पालन, खेद है, कड़ाई से नहीं होता। हिन्दी भाषा में सामान्यतः 'अथवा', 'या' आदि के पहले अल्पविराम का चिह्न नहीं लगता।

जैसे - पाटलिपुत्र या कुसुमपुर भारत की पुरानी राजधानी था।

कल मोहन अथवा हरि कलकत्ता जायेगा।


(ix) किसी व्यक्ति की उक्ति के पहले अल्पविराम का प्रयोग होता है।

जैसे- मोहन ने कहा, ''मैं कल पटना जाऊँगा। ''

इस वाक्य को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है- 'मोहन ने कहा कि मैं कल पटना जाऊँगा।' कुछ लोग 'कि' के बाद अल्पविराम लगाते है, लेकिन ऐसा करना ठीक नहीं है। यथा-

राम ने कहा कि, मैं कल पटना जाऊँगा।

ऐसा लिखना भद्दा है। 'कि' स्वयं अल्पविराम है; अतः इसके बाद एक और अल्पविराम लगाना कोई अर्थ नहीं रखता। इसलिए उचित तो यह होगा कि चाहे तो हम लिखें- 'राम ने कहा, 'मैं कल पटना जाऊँगा', अथवा लिखें- 'राम ने कहा कि मैं कल पटना जाऊँगा' ।दोनों शुद्ध होंगे।


(x) बस, हाँ, नहीं, सचमुच, अतः, वस्तुतः, अच्छा-जैसे शब्दों से आरम्भ होनेवाले वाक्यों में इन शब्दों के बाद अल्पविराम लगता है।

जैसे- बस, हो गया, रहने दीजिए।

हाँ, तुम ऐसा कह सकते हो।

नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।

सचमुच, तुम बड़े नादान हो।

अतः, तुम्हे ऐसा नहीं कहना चाहिए।

वस्तुतः, वह पागल है।

अच्छा, तो लीजिए, चलिए।


(xi) शब्द युग्मों में अलगाव दिखाने के लिए; जैसे- पाप और पुण्य, सच और झूठ, कल और आज। पत्र में संबोधन के बाद;

जैसे- पूज्य पिताजी, मान्यवर, महोदय आदि। ध्यान रहे कि पत्र के अंत में भवदीय, आज्ञाकारी आदि के बाद अल्पविराम नहीं लगता।


(xii) क्रियाविशेषण वाक्यांशों के बाद भी अल्पविराम आता है। जैसे- महात्मा बुद्ध ने, मायावी जगत के दुःख को देख कर, तप प्रारंभ किया।


(xiii) किन्तु, परन्तु, क्योंकि, इसलिए आदि समुच्च्यबोधक शब्दों से पूर्व भी अल्पविराम लगाया जाता है;



जैसे- आज मैं बहुत थका हूँ, इसलिए विश्राम करना चाहता हूँ।

मैंने बहुत परिश्रम किया, परंतु फल कुछ नहीं मिला।


(xiv) तारीख के साथ महीने का नाम लिखने के बाद तथा सन्, संवत् के पहले अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है।



जैसे- 2 अक्टूबर, सन् 1869 ई० को गाँधीजी का जन्म हुआ।


(xv) उद्धरण से पूर्व 'कि' के बदले में अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है।


जैसे- नेता जी ने कहा, ''दिल्ली चलो''। ('कि' लगने पर- नेताजी ने कहा कि ''दिल्ली चलो'' ।)


(xvi) अंको को लिखते समय भी अल्पविराम का प्रयोग किया जाता है। 


जैसे- 5, 6, 7, 8, 9, 10, 15, 20, 60, 70, 100 आदि।









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Monday, June 28, 2021

The rebel Poem Class 7th Tulip Series

 The Rebel

Poem Class 7th English Tulip Series.
D. J. Enright


When everybody has short hair,

The rebel let's his hair grow long.

When everybody has long hair ,

 The rebel cards his hair short.

When everybody talks during the lesson ,

The rebel doesn't share word 

When nobody talks during the lesson 

The rebel creates disturbance 

When everybody wears a uniform 

The rebel dresses in fantastic clothes 

When everybody was fantastic close 

The rebel dresses soberly.

 In the company of dog lovers 

The rebel expresses preference for cats 

In the company of cats lovers

The rebel puts in a good word for dogs 

When everybody is greeting the rain 

The rebel regrets the absence of the sun. 

When everybody goes to the meeting,

The rebel stays at home and reads a book. 

When everybody says at home and read a book 

The rebel goes to the meeting 

When everybody says ' yes, please' 

The rebel says no thank you 

When everybody says no thank you 

The rebel says,' yes, please',

 It is very good that we have rebels 

You may not find it very good to be one.



                                                -    D.J.Enright


Glossary


rebel                          –                 here a person who shows disagreement with the ideas of people in authority or society by behaving differently
fantastic                    –                 strange
soberly                                       seriously and reasonably
preference                               liking for something or someone
regret                        –                  to feel sorry about something you have done


Summary of the Poem 

The poem, The Rebel describes the character of a rebel, a person who does not conform to the norms of the society. The rebel is described as a person who would contradict others in order to be different. The character of the rebel in the poem is not based on a political activist, but seems to be a character sketch of a young adolescent, trying to be different. All the instances in the poem are repetitive affirmations of this fact.

If a rebel sees a group of people with short hair, he would let his hair grow long. On seeing others with long hair, the rebel would cut short his hair. Seeing everybody talk during the lesson, the rebel would become absolutely mute. On realizing that everybody is silent the rebel would create a disturbance.

Similarly, on various such issues, the rebel would be seen contradicting others and doing things that no one would be doing. He would refuse to wear the uniform when the others would be wearing it, praise the dogs when in the company of cat lovers, appreciate the sun on rainy days and rains on the sunny days. He would do just anything but not what others are doing.


The Rebel Summary In Hindi

यह कविता ‘द रीबेल’ एक विरोधी स्वभाव के व्यक्ति से जुड़ी है, जो समाज के स्थापित नियमों को नहीं मानता है। विरोधी से माना जाता है, जो अलग दिखने के लिए दूसरों के मुकाबले विरोधाभास करता है। इस कविता में विरोधी स्वभाव राजनीतिक सक्रियता न होकर एक युवा का चरित्र है, जो अलग दिखने की इच्छा रखता है। कविता के सारे उदाहरण इस बात का सबूत बार-बार देते हैं।

अगर विरोधी को एक ऐसा समूह दिखता है, जिसके सदस्यों के बाल छोटे हैं, तो वह अपने बाल लंबे रखेगा। दूसरों के लंबे बाल देखने पर वह अपने बाल छोटे कर लेगा। सब को पाठ के दौरान बातचीत करते हुए देखकर विरोधी पूर्ण रूप से चुप हो जाता है तथा यह महसूस होने पर कि सभी शांत हैं, विरोधी व्यवधान पैदा करने की कोशिश करता है। 

इसी प्रकार विरोधी अकसर दूसरों के साथ विरोधाभास की स्थिति में होता है और वह वही काम करता है, जो दूसरे नहीं कर रहे होते हैं, जब दूसरे स्कूल की वर्दी में होते हैं, तो वह स्कूल की वर्दी में नहीं दिखेगा, बिल्ली के प्रशंसकों के बीच वह एक कुत्ते की प्रशंसा करता है, बरसात में सूर्य की तारीफ तथा गर्मी में बरसात की तारीफ करता है। वह कुछ भी करेगा पर ऐसा कुछ नहीं करेगा, जो दूसरे लोग कर रहे होंगे।


Reading is Fun

Question (1) If someone doesn’t wear a uniform to school, what do you think the teacher will say?

Answer : The teacher would scold the student who would not be dressed in the school uniform while coming to the School.

Question (2)When everyone wants a clear sky, what does the rebel Want most?

Answer : When everyone wants a clear sky, the rebel wants the Sun.

Question (3)If the rebel has a dog for a pet, what i everyone else likely to have?

Answer : If a rebel has a dog for a pet, the others are most likely to be cat lovers.

Question (4)Why is it good to have rebels?

Answer : It is good to have rebels because they are different and they teach us to be able to accept and tolerate differences.

Question (5)Why is it not good to be a rebel oneself?

Answer : It is not good to be a rebel oneself because the Society never accepts a rebel and always critiques his behaviour.

   





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