मधुर मधुर मेरे दीपक जल (कविता)
महादेवी वर्मा
A hindi lesson by- Chander Uday Singh
Question 9:
नीचे
दी गई काव्य–पंक्तियों
को पढ़िए और प्रश्नों के
उत्तर दीजिए −
जलते
नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन
नित कितने दीपक;
जलमय
सागर का उर जलता,
विद्युत
ले घिरता है बादल!
विहँस
विहँस मेरे दीपक जल!
(क)
‘स्नेहहीन दीपक‘ से क्या तात्पर्य
है?
(ख)
सागर को ‘जलमय‘ कहने
का क्या अभिप्राय है
और उसका हृदय क्यों
जलता है?
(ग)
बादलों की क्या विशेषता
बताई गई है?
(घ)
कवयित्री दीपक को ‘विहँस
विहँस‘ जलने के लिए
क्यों कह रही हैं?
Answer:
(क)
स्नेहहीन दीपक से तात्पर्य
बिना तेल का दीपक
अर्थात प्रभु भक्ति से शून्य व्यक्ति।
(ख)
कवयित्री ने सागर को
संसार कहा है और
जलमय का अर्थ है
सांसारिकता में लिप्त। अत:
सागर को जलमय कहने
से तात्पर्य है सांसारिकता से
भरपूर संसार। सागर में अथाह
पानी है परन्तु किसी
के उपयोग में नहीं आता।
इसी तरह बिना ईश्वर
भक्ति के व्यक्ति बेकार
है। बादल में परोपकार
की भावना होती है। वे
वर्षा करके संसार को
हराभरा बनाते हैं तथा बिजली
की चमक से संसार
को आलोकित करते हैं, जिसे
देखकर सागर का हृदय
जलता है।
(ग)
बादलों में जल भरा
रहता है और वे
वर्षा करके संसार को
हराभरा बनाते हैं। बिजली की
चमक से संसार को
आलोकित करते हैं। इस
प्रकार वह परोपकारी स्वभाव
का होता है।
(घ)
कवयित्री दीपक को उत्साह
से तथा प्रसन्नता से
जलने के लिए कहती
हैं क्योंकि वे अपने आस्था
रुपी दीपक की लौ
से सभी के मन
में आस्था जगाना चाहती हैं।
Question 10:−
क्या
मीराबाई और आधुनिक मीरा
‘महादेवी वर्मा’ इन दोनों ने
अपने-अपने आराध्य देव
से मिलने कि लिए जो
युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको
कुछ समानता या अतंर प्रतीत
होता है? अपने विचार
प्रकट कीजिए?
Answer:
महादेवी
वर्मा ने ईश्वर को
निराकार ब्रह्म माना है। वे
उसे प्रियतम मानती हैं। सर्वस्व समर्पण
की चाह भी की
है लेकिन उसके स्वरुप की
चर्चा नहीं की। मीराबाई
श्री कृष्ण को आराध्य, प्रियतम
मानती हैं और उनकी
सेविका बनकर रहना चाहती
हैं। उनके स्वरुप और
सौंदर्य की रचना भी
की है। दोनों में
केवल यही अंतर है
कि महादेवी अपने आराध्य को
निर्गुण मानती हैं और मीरा
सगुण उपासक हैं।
नीचे दी गई काव्य–पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए–
Question 1:
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे
जीवन का अणु गल
गल!
Answer:
भाव
कवयित्री
का मानना है कि मेरे
आस्था के दीपक तू
जल-जलकर अपने जीवन
के एक-एक कण
को गला दे और
उस प्रकाश को सागर की
भाँति विस्तृत रुप में फैला
दे ताकि दूसरे लोग
भी उसका लाभ उठा
सके।
Question 2:
भाव
स्पष्ट कीजिए–
युग–युग प्रतिदिन प्रतिक्षण
प्रतिपल,
प्रियतम
का पथ आलोकित कर!
Answer:
भाव
इन पंक्तियों में कवयित्री का
यह भाव है कि
आस्था रुपी दीपक हमेशा
जलता रहे। युगों-युगों
तक प्रकाश फैलाता रहे। प्रियतम रुपी
ईश्वर का मार्ग प्रकाशित
करता रहे अर्थात ईश्वर
में आस्था बनी रहे।
Question 3:
भाव
स्पष्ट कीजिए–
मृदुल
मोम सा घुल रे
मृदु तन!
Answer:
भाव
इस पंक्ति में कवयित्री का
मानना है कि इस
कोमल तन को मोम
की भाँति घुलना होगा तभी तो
प्रियतम तक पहुँचना संभव
हो पाएगा। अर्थात ईश्वर की प्राप्ति के
लिए कठिन साधना की
आवश्यकता है।
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