Monday, June 15, 2020

Bhikshuk ( Kavita) kavi parichay aur sampoorn vyakhya

Suryakant Tripathi Nirala Poems In Hindi - स्मृति शेष ...

भिक्षुक



A hindi  lesson by- Chander Uday Singh




सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

(1896 से 1961 ईस्वी)

कवी परिचय 

निराला का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगला के माध्यम से हुई। निराला जी का पारिवारिक जीवन सुखमय नहीं रहा। 1988 में पत्नी मनोहरा देवी की मृत्यु हुई। पुत्री सरोज की मृत्यु ने तो इनका मानसिक संतुलन भी स्थिर नहीं रहने दिया। निराला जी के साहित्यिक जीवन की यात्रा मतवाला के संपादन से शुरू हुई। इसी पत्रिका में उनकी मुक्तक छंद की रचनाएं छपी थी। छंद और विषय वस्तु दोनों क्षेत्रों में निराला ने अपने लिए परंपरा से अलग रास्ता निकाला। सामाजिक शोषण के प्रति उनकी वाणी विद्रोह से भर उठी। निराला जी आधुनिक युग के एक क्रांतिकारी कवि के रूप में विख्यात है। उनकी मुख्य रचनाएं हैं यह अनामिका , परिमल , अणिमा, राम की शक्ति-पूजा।


भिक्षुक 
कविता की व्याख्या 



1. वह आता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी-भर दाने को-भूख मिटाने को
मुँह फटी-पुरानी झोली का फैलता -
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता|

प्रसंग- प्रस्तुत  अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।



व्याख्या - प्रस्तुत पद में कवि निराला जी ने कहा है कि एक भिखारी को जब वे भीख माँगते देखते हैं तो उसकी दीन - हीन दशा को देखकर उनके कलेजे के टुकड़े - टुकड़े हो जाते हैं वह अपनी दीन - हीन अवस्था को देखकर पश्चाताप है वह लाठी के सहारे धीरे धीरे चलता हैं ,उसकी पीठ और पेट एक हो गए हैं यानी की वह कई दिनों से भूखा है थोड़े से भोजन के लिए उसे दर -दर की ठोकरे खानी पड़ रही हैं  उसके हाथ में एक फटी पुरानी झोली है ,जिसे वह सबके सामने फैलाता हुआ भीख माँग रहा  है ताकि वह अपना पेट भर सके  यह देख कर कवि का ह्रदय चीर - चीर हो जाता है  यह दरिद्रता को देखकर पछताता रहता है


2. साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये ,
बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया-दृष्टि पाने की ओर बढ़ाए|
भूख से सूख ओंठ जब जाते,
दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसूओं के पीकर रह जाते|

प्रसंग- प्रस्तुत  अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।

व्याख्या - सड़क पर चलते भिखारी के साथ उसके दो बच्चे भी है वे अपने बाएँ हाथ से अपने पेट को मलते हुए चल रहे है और दाहिने हाथ से आते -जाते हुए लोगों से कुछ पाने के लिए हाथ फैलाये माँग रहे हैं  भूख से होंठ सूख गए गए है तो वे अपने अपने आंसुओं को पीकर रह जाते है ऐसा लगता है मानों उन बच्चों की दशा को देख कर किसी को दया नहीं आती है और किसी ने उनको खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलता अतः कवि उनकी दशा को देखकर द्रवित हो जाता है। 


3.चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए ,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए|
ठहरो, अहो मेरे हृदय में है अमृत,
मैं सींच दूंगा|
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा|

प्रसंग- प्रस्तुत  अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक नव भारती कक्षा 10 में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ’निराला’ द्वारा रचित ’भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।

व्याख्या - भूख से ब्याकुल भिखारी और उसके दोनों बच्चे जब मार्ग से गुजरते है तो सड़क से किनारे झूठी पत्तलों को देखकर उनसे रहा नहीं जाता है और वे अपनी भूख को मिटाने के लिए वे सड़क पर पड़े हुए उन्ही झूठी पत्तलों को चाटते हैं  वे भी गली के कुत्ते को साथ झूठी पत्तलों को चाटने के लिए लड़ने लगते हैं। कवि यह देखकर को देखकर द्रवित हो जाता है  कवि का ह्रदय इस बात के लिए चिंतित हो जाता है कि वह उनके दुःख दर्द को बाटेंगा और इनका दर्द दूर करेगा 


भिक्षुक कविता का केंद्रीय भाव / मूल भाव



भिक्षुक कविता महाप्राण निराला जी द्वारा लिखी गयी है।प्रस्तुत कविता में कवि एक भिखारी और उसके दो बच्चों की दयनीय अवस्था का वर्णन किया है।  भिखारी से पेट और पीठ भुखमरी के कारण एक हो गए है । वे अपनी भूख मिटाने के लिए भीख माँगते रहते है ,सड़क पर चलते हुए झूठी पत्तलों को चाट रहे हैं ,जिसके लिए उन्हें कुत्तों से भी छिना -झपटी करना पड़ रहा है । भिक्षुक की दीनता को देख कर कवि उनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करता है




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Friday, May 29, 2020

Jammu ki chitrkla Part 2, hindi 10th JKBOSE

File:Krsna Takes Rukmini Away from Devi Shrine.jpg - Wikimedia Commons

जम्मू की चित्रकला

Jammu ki chitrkala

A hindi  lesson by-  

Chander Uday Singh

जम्मू की चित्रकला

 

 प्रश्न अभ्यास भाग-2 


प्रश्न 6. 18 वीं शताब्दी का उत्तरार्धजम्मू कलम’ का स्वर्णिम काल क्यों कहा जाता है?
उत्तर. राजा ध्रुव देव, जिसका राज्यका 1702 ईस्वी से 1730 ईस्वी तक  रहा, अपने समय का शक्तिशाली शासक था। उसके उपरांत जम्मू के शासक रंजीत देव के समय के पहाड़ी चित्र उपलब्ध हुए 18 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध 'जम्मू-कलम' का स्वर्णिम काल माना जाता है। उस काल में बहुत से चित्रकार हुए और उनके सृजन का स्तर भी ऊंचा रहा उनका प्रेरणा स्रोत जम्मू के सुप्रसिद्ध राजा रंजीत देव का छोटा भाई बलवंत देव था।


प्रश्न 7. पंडित संसार चंद ने जम्मू कलम को  जीवित रखने में क्या योगदान दिया?
उत्तर. जगतराम छुनिया  के शिष्य पंडित संसार चंद थे। पंडित संसार चंद बहुत ही प्रतिभा संपन्न थे उन्होंने एक ओर  'जम्मू-कलम' अथवा 'पहाड़ी कलम' की शैली को जीवित रखा, तो दूसरी ओर पुरानी और नई शैली के मिश्रण के चित्र बनाए हैं। आपके इन प्रयोगों की बड़ी प्रशंसा हुई है और देश-विदेश में यह चित्र देखें, खरीदे सराहे गए हैं। प्रकृति चित्रण में आप सिद्धहस्त थे। 'डोगरा आर्ट गैलरी' के निर्माताओं में से थे तथा गैलरी के प्रथम संग्रह पाल (क्यूरेटर) भी रहे थे।


प्रश्न 8. 'जम्मू-कलम' के प्रसिद्ध समकालीन चित्रकारों के नाम लिखें।
उत्तर. पंडित संसार चंद की कला परंपरा को आगे बढ़ाने में उनके 3 शिष्यों .पीशर्मा सारथी, देवदास तथा गिरधारी लाल कार्यरत हैं यह सभी चित्रकार समकालीन हैं तथा वर्तमान में कला का निखार कर रहे हैं


प्रश्न 9. पहाड़ी चित्रकला की विशेषता के बारे में 3 वाक्य लिखें
उत्तर.पहाड़ी चित्रकला (कलम) की कई विशेषताएं हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि डेढ़ सौ साल बीत जाने पर भी इनके रंग ऐसे ताजा हैं कि जान पड़ता है कि अभी लगाए गए हैं इन में प्रयुक्त रंग बहुदा मिट्टी से बनाए जाते थे पूर्णविराम कुछ एक वनस्पति और पुष्पों से भी निर्मित करते थे 
 दूसरी विशेषता रेखा को और नख-शिख चित्रण की है रेखाएं पूर्ण रूप से सजी हुई हैं और नक्श एक बहुत ही सूक्ष्म और बारीक रेखाओं से बनाए गए हैं।
 इनमें वनस्पति, फूल, वृक्षों का चित्रण बहुत बारीकी और कलात्मकता के साथ किया गया है वस्त्रों का चित्रण पारदर्शी तथा मोहक है महलों, मुंडेरों, मेहराबों तथा द्वारों पर बेल बूटे का बारीक कार्य देखते ही बनता है इन्हीं गुणों के कारण इन चित्रों ने देश-विदेश में ख्याति अर्जित की है और भारत का नाम संसार भर में उजागर किया है






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Thursday, May 28, 2020

Jammu ki chitrkla Part 1, hindi 10th JKBOSE

Fourteen Basohli Paintings - 50 Watts


जम्मू की चित्रकला

Jammu ki chitrkla


A hindi  lesson by- Chander Uday Singh

जम्मू की चित्रकला

 

 प्रश्न अभ्यास

बोध और सरहाना

प्रश्न 1. ललित कलाएं कितने प्रकार की हैं। उनके नाम क्या है?

उत्तर. ललित कलाएं पांच हैं साहित्य कलासंगीत कला, मूर्तिकला, चित्रकला तथा नृत्य कला। महामुनि कपिल कहते हैं:-

साहित्य संगीत कला विहीन :

साक्षात पशु पुच्छ विषाण हीन:

अर्थात वह व्यक्ति जो साहित्य, संगीत, नृत्य आदि कलाओं को नहीं जानता वह बिना सींग तथा पूंछ के पशु है इससे स्पष्ट है कि कला जानने वाला ही मनुष्य कहलाने का अधिकारी है।

प्रश्न 2. मानव की प्राचीनतम लिपि कौन सी है?

उत्तर. मानव की प्राचीनतम लिपि चित्रों की लिपि है, जिसे चित्र- लिपि कहते हैं। 

प्रश्न 3. चित्रकला को विश्वव्यापी कला क्यों कहते हैं?

उत्तर. चित्र देखने में सरल होता है और सामान्यता हर व्यक्ति देख कर किसी सीमा तक समझ सकता है उदाहरण के तौर पर विविध भाषाओं में पक्षी, तामर, परिंदा लिख दिया जाए, तो यह नाम वही आदमी पढ़ सकता है, जो वह भाषा जानता हो परंतु इन सब के स्थान पर यदि एक पक्षी का चित्र बना दिया जाए, तो सभी समझ सकते हैं कि पक्षी बना है। इसी कारण चित्रकला को विश्वव्यापी भाषा कहा जाता है

प्रश्नजम्मू की चित्रकला का जन्म किस शताब्दी में हुआ?

उत्तर. उत्तर भारत में चित्रकला का एक केंद्र जम्मू भी रहा है। जम्मू की कलाजम्मू कलम’ अथवाजम्मू पहाड़ी कला’ के नाम से जानी जाती है।जम्मू चित्रकला’ का भारतीय कला के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान है इस कला का जन्म लगभग 18वीं शताब्दी में हुआ

प्रश्न 5. कृपाल पाल का दरबारी चित्रकार कौन था तथा उसने कौनसी विश्व विख्यात चित्रकला चित्रित की?

उत्तर. 17 वीं शताब्दी में बसोली पर राजा कृपाल पाल का राज था वह कला प्रेमी तथा कला संकरक्षक था उसके प्रसिद्ध दरबारी चित्रकार देवदास ने बहुत से अनुपम चित्र बनाएं उसने रसमंजरी नामक विश्व विख्यात चित्रावली चित्रित करके राजा कृपाल पाल को भेंट की थी। यह काल बसोहली चित्रकला का स्वर्णिम काल था



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